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क्यों तुझे ऐसा भाया

क्यों तुझे ऐसा भाया

अब तक तो अपने ही मन का राग बेसुरा गाया।
राष्ट्रहित से समझौता कर किससे हाथ मिलाया।।

साथ समय के मिलकर तूने कदम न कभी बढ़ाया।
निराधार, व्यर्थ बातों में तूने सबको उलझाया।।

युगानुरूप तुझे ढलने को क्या कोई नहीं बताया।
या मनमानी कर तूने ही अब तक सर्वस्व गंवाया।।

अभी जहां तुम बैठे हो, वह भी विरासत में है पाया।
जिस पथ चले वे श्रेष्ठ जन , अब घना अंधेरा छाया।।

सर्वसमर्थ होने पर भी इतिहास न कोई बनाया।
दुविधा में ही उलझ-उलझ अब तक समय बिताया।।

एक व्यक्ति ऐसा बतला दो जिसे तूने गले लगाया।
पूछो "विवेक" से अबतक तूने सम्मान नहीं क्यों पाया।।
क्यों तुझे ऐसा भाया?


डॉक्टर विवेकानंद मिश्र
डॉक्टर विवेकानंद पथ, गोल गोलबगीचा, गयाजी, बिहार दिनांक 30 मई 2025
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