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गलती से गलत शादी में जाना

गलती से गलत शादी में जाना

जल्दी से तैयार होकर हम निकले एक शादी में
पतिदेव ड्राइव कर रहे थे
और मैं बातों में उनको उलझाए हुई थी
दरअसल देर मेरी वजह से हुई थी
इसलिए पतिदेव का गुस्सा सातवें आसमान पर था
चिकनी चुपड़ी बातों से पति को
शांत करने की कोशिश कर रही थी
इसी बीच पतिदेव ने कार मोड़ा और एक सुंदर से सजे जगह पर
पार्किंग में गाड़ी रोक दिया
हमने जल्दबाजी में दुल्हा-दुल्हन का नाम नहीं पढ़ा
और सीधे अंदर पहुंच गए
चारों ओर नजरें दौड़ा रहे थे
पर जान-पहचान वाले कहीं नजर नहीं आ रहे थे
अचानक दुल्हा-दुल्हन के पीछे उनका नाम दिखा
अचंभित हो हमने एक दूसरे को देखा
अरे! हम ये कहां आ गए ?
लगता है गलत जगह पर आ गए
चुपके से लौटने ही वाले थे कि
किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रखा
पलटकर देखी तो खुशी से चहक उठी
ये तो मेरी बचपन की सहेली थी
थोड़ी मोटी तो वो हो गई थी
पर चेहरे पर आज भी वही भोलापन था
उसने बताया कि उसकी बिटिया की शादी हो रही है
बिना आशीर्वाद दिए कहां भागी जा रही हो
बहुत ढ़ूढी तुम्हें, पर आज मिली हो
तुम लोगों ने खाना खाया कि नहीं
मैं ने पतिदेव की ओर देखा
नज़रों में चुहलबाज़ी साफ झलक रही थी
गलती से गलत शादी में जाने का दुख नहीं
साली से पहली बार मिलने की खुशी छलक रही थी
मैंने बाद में सहेली को अचानक वहां पहुंचने का कारण बताया
तो सहेली ने कहा जो होता है अच्छे के लिए होता है
गलती से गलत शादी में जाना भगवान की मर्जी थी
बरसों से बिछड़ी सहेली से मिलने की बारी थी।
-सविता शुक्ला मुंबई
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