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ग्रहों की दशा, आत्मा की दिशा होती है

ग्रहों की दशा, आत्मा की दिशा होती है

लेखक: अवधेश झा (संस्थापक – श्रीहरि ज्योतिष)

भारतीय ज्योतिष केवल 'कालगणना' या 'फलादेश' की विद्या नहीं है, अपितु यह आत्मा की यात्रा में मार्गदर्शन करने वाला दिव्य प्रकाश है। पश्चिमी पद्धतियाँ जहाँ इसे केवल चार्ट रीडिंग और इवेंट प्रेडिक्शन तक सीमित करती हैं, वहीं वैदिक ज्योतिष—विशेषकर ब्रह्म ज्योतिष—जीवन के परम उद्देश्य, यानी ब्रह्म साक्षात्कार की दिशा में पथप्रदर्शक बनता है।

ब्रह्म ज्योतिष अर्थात् आत्मा की दिशा का विज्ञान है, वास्तव में ‘ब्रह्म ज्योतिष’ वह दृष्टिकोण है, जो कुंडली को आत्मा की परम योजना (Soul’s divine blueprint) मानता है। इसमें जन्मपत्री केवल सांसारिक घटनाओं का फल नहीं बताती, बल्कि यह जीव से ब्रह्मतत्व या उस परमतत्व की ओर यात्रा का एक गूढ़ एवं गंभीर मानचित्र बनाती है।

ब्रह्म ज्योतिष में ‘जन्म कुंडली’ ही ‘आत्मा का स्मृति पत्र’ है। यहां, आत्मा जन्म के साथ जो शरीर धारण करती है, उसमें उसका कर्म-संचय, संस्कार, पूर्व जन्मों के ज्ञान और अधूरे उद्देश्य भी साथ आते हैं। इन सभी का प्रतिबिंब जन्म कुंडली में परिलक्षित होता है।

ग्रह: ब्रह्म के जीवंत प्रतीक है।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:
“नक्षत्राणामहम् शशि:” (10.21) (मैं नक्षत्रों में चंद्रमा हूँ) — इसका अर्थ है कि ग्रह-नक्षत्र केवल खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि ब्रह्म तत्त्व के सक्रिय प्रतीक हैं। वे चेतन आत्मा को उसकी ब्रह्म स्थिति की ओर अग्रसर करने वाले माध्यम हैं।

ज्योतिषीय योगों का आत्मिक अर्थ: राजयोग — सत्ता, पद, यश पूर्व जन्मों के तप, सेवा व विवेक से आत्मा समाज में कर्तृत्वशील होना है। वही गजकेसरी योग प्रतिष्ठा, बुद्धिमत्ता करुणा (चंद्र) + ज्ञान (गुरु) से युक्त आत्मा का धर्ममार्ग
विपरीत राजयोग कठिनाइयों में सफलता आत्मा की परीक्षा भूमि – वैराग्य, सहनशीलता, आत्मजागरण है, तथा धन योग संपत्ति व संसाधन ज्ञान, सत्कर्म, पुण्य, आत्मिक सम्पन्नता है और सत्य योग (सूर्य + गुरु/केतु) आदर, प्रसिद्धि आत्मा की तपस्विता, ब्रह्मबोध, त्याग की प्रेरणा। ही है।

जीवन की ग्रह दशाएँ — आत्मा की साधना का क्रम है। ग्रहों की दशाएँ न केवल जीवन में घटनाएँ लाती हैं, बल्कि आत्मा को उसके पूर्व कर्मों के अनुरूप ‘सुधार -मार्ग’ पर ले जाती हैं। ये दशाएँ अध्यात्मिक पाठशाला हैं, जिनमें आत्मा को आवश्यक शिक्षा, परीक्षा और अनुभूति प्राप्त होती है।

महादशाओं का आत्मिक मूल्यांकन: गुरु महादशा: धर्म, सद्गुण, गुरुकृपा, आत्म -प्रबोधन → यह दशा आत्मिक जागरण की ऋतु जैसी होती है।
केतु महादशा: अलगाव, विरक्ति, ध्यान → आत्मा की मौन यात्रा, लौकिक से अलौकिक की ओर।
शनि महादशा: संयम, कर्मफल, अनुशासन→ आत्मा की संघर्षमयी साधना, धैर्य की परीक्षा।
सूर्य महादशा: आत्मदर्शन, नेतृत्व, तेज → आत्मा का चैतन्य बोध, ईश्वरीय प्रकाश से संपर्क।
चंद्र महादशा: भावना, कल्पना, करुणा → आत्मा की मातृ चेतना, चित्त की शुद्धि।
राहु महादशा — भ्रम से ब्रह्म तक की यात्रा है। राहु को सामान्यतः छाया ग्रह माना जाता है, जो मायाजाल, आकांक्षा, और असंतुलित वासनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। परंतु ब्रह्म ज्योतिष की दृष्टि से राहु महादशा एक अत्यंत महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी काल होता है।
कुंडली: आत्मा के लक्ष्य की दिशा में संकेतक है, जहां लग्न आत्मा की स्थूल पहचान, इस जीवन का मुख्य कर्म और चंद्र मन, चित्त, संस्कार है, गुरु धर्म और ब्रह्म ज्ञान का स्रोत तथा केतु पूर्व जन्म के योग, वैराग्य हैं। अष्टम भाव रहस्य, परिवर्तन, गूढ़ साधना तथा बारहवाँ भाव मोक्ष, त्याग, ब्रह्मलीनता की स्पष्ट प्रतिबिंब है।
जब किसी कुंडली में ये भाव शुभ ग्रहों या गूढ़ योगों से युक्त हों, तब यह आत्मा की ब्रह्म प्राप्ति की तत्परता को दर्शाते हैं।
ज्योतिषीय संकेत और उपनिषद
छांदोग्य उपनिषद (8.6.5) में वर्णित है:
“स यो ह वै तदक्षरं गार्ग्य विदित्वा स्मरलोकात् प्रैति स ब्रह्मा...”
(जो ब्रह्म को जानकर शरीर त्यागता है, वह ब्रह्मलोक को प्राप्त होता है।)
इस ‘विदित्वा’—ज्ञान की अवस्था—को ही गुरु, केतु, नवांश एवं अष्टम भाव के संयोजन द्वारा समझा जाता है।
ब्रह्म ज्योतिष: आत्मा की शिवदृष्टि — जब हम ज्योतिष को केवल घटनाओं की गणना तक सीमित रखते हैं, वह ‘अब्रह्म स्थिति’ में सहायता करता है — यानी सांसारिक जीवन के लिए। किन्तु जब ज्योतिष को ब्रह्मस्थिति की ओर पथदर्शक मानकर उपयोग किया जाए, तब यह तीसरा नेत्र बन जाता है — जो अज्ञान के अंधकार को भस्म कर देता है। ज्योतिष डराने या लुभाने के लिए नहीं है। इसका उद्देश्य है आत्मा को उसके परम लक्ष्य—ब्रह्मबोध—की दिशा देना। ग्रह बाधा नहीं हैं, वे ब्रह्म के दूत हैं। “ज्योतिषं चक्रं न केवलं भवितव्यं कथयति, किं तु आत्मा को ब्रह्म की ओर कैसे चल रहा है, यह भी प्रकट करता है।” अतः ब्रह्म ज्योतिष की दृष्टि से कुंडली एक ब्रह्मयात्रा का नक्शा है, और ज्योतिषी वह दिव्य द्रष्टा है जो आत्मा को उसका मार्ग दिखाता है।
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