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छोड़ो कल की बातें

छोड़ो कल की बातें

पढ़-लिखकर तुमने किया क्या ?
दुल्हा चौका करना ही तुम्हारी नीयति है
तुम दोयम दर्जे की हो ?
तुमसे न हो पाएगा
लोगों की ऐसी बातें
सुन-सुनकर वो रोती थी
अपने औरत होने पर स्वयं को कोसती थी
स्वयं को कमजोर समझती थी
आत्मसम्मान को वो भूल चुकी थी
एक दिन उसने आईने के सामने स्वयं को निहारा
उसे अच्छा लगा अपना मासूम सा चेहरा
वह रोज आईने में स्वयं को देखने लगी
मुलाकातें हुईं तो धीरे धीरे स्वयं से बातें भी होने लगी
उसे स्वयं से प्यार होने लगा
बुझे मन में आस का जोत जलने लगा
उसने थामा कलम और दिल खोलकर लिखने लगी
उसकी बातें लोगों के दिलों को छूने लगी
लेखनी ने एक अलग पहचान दिलाई
उसके अंदर विश्वास की लौ जगाई
अब वह मजबूत औरत बन रही थी
आत्मबल के दम पर आगे बढ़ रही थी
ताने सुनकर अनसुनी करने लगी
कभी-कभी गुनगुनाने भी लगी
छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी
नये दौर में लिखेंगे हम रोज नयी कहानी
कहानी ही तो लिख रही थी वो एक आत्मविश्वासी औरत की
नये दौर की सशक्त आम औरत की।
-सविता शुक्ला मुंबई
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