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पारंपरिक लोकगीतों को संजोती पुस्तक का भव्य लोकार्पण, पद्म भूषण डॉ. सी. पी. ठाकुर ने की सराहना

पारंपरिक लोकगीतों को संजोती पुस्तक का भव्य लोकार्पण, पद्म भूषण डॉ. सी. पी. ठाकुर ने की सराहना

  • बज्जिका लोकसंस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम
बाबू जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान के सौजन्य से आज संध्या 4 बजे “पारंपरिक लोकगीत” पुस्तक का भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर लोकगीतों की समृद्ध परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने की दिशा में यह एक प्रेरणादायक पहल मानी गई।

मुख्य अतिथि के रूप में समारोह में उपस्थित रहे पद्म भूषण डॉ. सी. पी. ठाकुर, जिन्होंने बज्जिका भाषा में रचित इस पुस्तक की प्रशंसा करते हुए इसे सांस्कृतिक धरोहर बताया। उन्होंने कहा, “व्यक्ति चाहे जितना भी आधुनिक जीवन में व्यस्त हो, अपने पारिवारिक और सामाजिक उत्सवों में पारंपरिक लोकगीतों की उपस्थिति अनिवार्य होती है। इसे हमें सहेज कर अगली पीढ़ी को सौंपना चाहिए।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. अनिल सुलभ, अध्यक्ष — बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, ने लेखिका को शुभकामनाएँ देते हुए कहा, “लोकगीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक आत्मा हैं। ऐसी कृतियाँ समाज को अपनी जड़ों से जोड़ती हैं। हमें न केवल चिंतित होना है, बल्कि चिंतन और क्रियान्वयन की दिशा में भी आगे बढ़ना है।”

विशिष्ट अतिथि डॉ. नरेंद्र पाठक, निदेशक — बाबू जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, ने युवाओं को इस दिशा में शोध एवं सृजन के लिए प्रेरित किया और कहा कि संस्थान साहित्यिक अभिरुचियों को प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिबद्ध है।

प्रसिद्ध लोकगीत गायक श्री मनोरंजन ओझा तथा श्री हृदय नारायण झा, सदस्य — मैथिली अकादमी, ने भी समारोह की गरिमा बढ़ाई।

कार्यक्रम का संचालन आकाशवाणी विविध भारती, दिल्ली की लोकप्रिय उद्घोषिका सारिका पंकज ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से किया। उद्घाटन के समय पुस्तक की लेखिका और संकलनकर्ता श्रीमती गीता सिंह ने पारंपरिक स्वागत गीत और झूमर प्रस्तुत कर वातावरण को भावपूर्ण बना दिया।

अपने संबोधन में श्रीमती गीता सिंह ने कहा, “यह संकलन अगली पीढ़ी के लिए एक सांस्कृतिक दस्तावेज है। लोकगीतों में हमारे संस्कार, हमारी भावनाएँ और सामाजिक संरचना जीवित हैं। इसे संरक्षित रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।”

बज्जिका भाषी श्री दीपक ठाकुर ने भी पुस्तक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऐसी रचनाएँ दुर्लभ हैं और भविष्य की सांस्कृतिक चुनौतियों से निपटने में सहायक सिद्ध होंगी।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, शोधार्थी, सांस्कृतिक कर्मी तथा आम नागरिकों की भागीदारी रही। “पारंपरिक लोकगीत” पुस्तक का यह लोकार्पण समारोह न केवल एक साहित्यिक उपलब्धि था, बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक सार्थक पहल के रूप में देखा जा रहा है।

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