जो गया मुँह फेर कर, मीत है।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जो गया मुँह फेर कर, मीत है।
लै गई है टूट जिसकी,गीत है।
दिख रही थी इमारत जो फलकबोस,
साबितोसालिम वो सैकत भीत है ।
फर्हाद शीरीं और जूएशीर,
आग पानी प्राण की प्रीत है।
कोहकनी खातिरेमाशूक जग में,
कफ़न सर पर बाँधने की रीत है।
टूटकर जाए बिखर पाजेब हरसू,
बस यही तो नर्त्तकी की जीत है।
दरमुश्त जो लम्हा जी लो जीभर ,
वक्त मद्फन, जो गया बीत है ।
(जूएशीर =दूध की नहर,जो फर्हाद शीरीं के लिए निकालना चाहता था; कोहकनी =पहाड़ को काटना। )
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