लेजर तकनीक से चश्मों से मुक्ति: आंखों की दृष्टि सुधार की नई क्रांति
— संवाददाता: सुरेन्द्र कुमार रंजन
आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली, असंतुलित खानपान, और बढ़ते प्रदूषण ने मानव शरीर को अनेक रोगों की गिरफ्त में ला दिया है। इनमें सबसे अधिक प्रभावित अंग है – आंखें। इन आंखों की देखभाल अक्सर उपेक्षित रह जाती है, और परिणामस्वरूप छोटे-बड़े सभी आयु वर्ग के लोग मोटे-मोटे चश्मे पहनने को विवश हो जाते हैं। यहां तक कि जन्मजात बच्चों की आंखें भी अब कमजोर होने लगी हैं।
लेकिन विज्ञान ने आंखों की इस समस्या के समाधान के लिए एक चमत्कारी तकनीक प्रदान की है — लेजर ट्रीटमेंट, जिसके ज़रिए मोटे चश्मों से स्थायी रूप से छुटकारा पाया जा सकता है।
लेजर तकनीक: एक चमत्कारिक उपचार
चेन्नई स्थित प्रतिष्ठित शंकर नेत्रालय के कॉर्निया विशेषज्ञ डॉ. अदिति जौहरी के अनुसार, आज ‘एक्जाइमर लेजर’ (जिसे "ठंडा लेजर" भी कहते हैं) द्वारा चश्मे के पावर को शून्य किया जा सकता है। यह प्रक्रिया लेसिक सर्जरी कहलाती है और इसे अब तक लाखों लोगों पर सफलता से लागू किया जा चुका है।
लेजर ट्रीटमेंट की प्रक्रिया
इस सर्जरी की प्रक्रिया बेहद सुरक्षित और त्वरित होती है:
पूर्व जांच: आंखों की अनेक जांचें होती हैं – चश्मे का पावर स्थिर है या नहीं, कॉर्निया की मोटाई और स्वास्थ्य, रेटिना की स्थिति, आंखों का दबाव आदि।
सर्जरी की तैयारी: सर्जरी के दिन आँखों में ड्रॉप्स द्वारा सुन्नता दी जाती है।
सर्जरी प्रक्रिया:
माइक्रो केरोटोम (एक विशेष ब्लेड) द्वारा कॉर्निया (काली पुतली) की सतह पर एक पतली झिल्ली (Flap) काटी जाती है।
फिर लेजर किरणों द्वारा चश्मे के पावर को शून्य किया जाता है।
उसके बाद झिल्ली को वापस रख दिया जाता है।
पूरी प्रक्रिया 5 मिनट में पूर्ण हो जाती है।
लेजर सर्जरी के लिए पात्रता
लेजर उपचार हर व्यक्ति के लिए उपयुक्त नहीं होता। इसके लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है:
उम्र 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
पिछले 1 वर्ष में चश्मे का पावर नहीं बदला हो।
कॉर्निया की मोटाई पर्याप्त हो।
कॉर्निया या रेटिना में कोई रोग या छिद्र न हो।
आंखों का सामान्य दबाव होना चाहिए।
संक्रमण से मुक्त पलकों और आंखों की सतह।
लेजर ट्रीटमेंट के प्रकार
PRK (Photo Refractive Keratectomy)
यह पुरानी तकनीक है जिसमें सतही लेजर से चश्मे का पावर हटाया जाता है।
LASIK (Laser-Assisted In Situ Keratomileusis)
वर्तमान में सबसे अधिक प्रचलित तकनीक है, जिसमें -14 तक की मायोपिया और +7 तक की हाइपरमेट्रोपिया का सफल इलाज होता है।
Epi-LASIK / AP-LASIK
कम मोटाई वाले कॉर्निया वाले रोगियों के लिए विकसित तकनीक। इसमें -6 तक के पावर का सुधार संभव है।
विशेष:
LASIK दोनों आंखों में एक साथ संभव है, लेकिन Epi-LASIK एक-एक कर की जाती है।
लेजर ट्रीटमेंट के लाभ
मोटे चश्मों से स्थायी राहत।
अगले ही दिन सामान्य दृष्टि का अनुभव।
सूक्ष्म अक्षरों को पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं।
चश्मा उतारने की स्वतंत्रता से आत्मविश्वास में वृद्धि।
संभावित दुष्प्रभाव व सावधानियां
ड्राई आई: कुछ रोगियों को आंखों में सूखापन अनुभव होता है, जिसके लिए आई ड्रॉप्स दिए जाते हैं।
रात में चमक की समस्या: विशेषकर वाहन चलाते समय।
चोट का खतरा: सर्जरी के बाद शुरू के कुछ महीनों में आंखों को विशेष सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
संक्रमण: संक्रमण से बचाव के लिए सख्त सावधानियां आवश्यक हैं।
सर्जरी से पहले और बाद की विशेष सावधानियां
सर्जरी से पहले:
पलकों में किसी भी प्रकार के संक्रमण का इलाज कराना अनिवार्य।
कॉन्टेक्ट लेंस का उपयोग कम-से-कम दो सप्ताह पूर्व बंद कर देना।
सर्जरी के बाद:
समय पर आई ड्रॉप्स का उपयोग करें।
आंखों को रगड़ने से बचें।
2 सप्ताह तक चेहरे को पानी से न धोएं।
धूल, धुआं, तेज रोशनी और भीड़ से बचें।
रात में प्लास्टिक की शील्ड और दिन में काले चश्मे का प्रयोग करें।
तीन दिन बाद से कंप्यूटर पर कार्य संभव है।
सामान्य गतिविधियाँ अगले ही दिन से आरंभ कर सकते हैं।
विशेषज्ञ की सलाह
डॉ. अदिति जौहरी का स्पष्ट संदेश है कि सर्जरी से पहले पूर्ण जांच अनिवार्य है। कोई भी सर्जरी अधूरी जांच के आधार पर नहीं करानी चाहिए। साथ ही यह समझना आवश्यक है कि यह तकनीक चश्मे की निर्भरता को कम करने के लिए है, 100% परिणाम की गारंटी कोई भी चिकित्सक नहीं दे सकता।
आज की व्यस्त और आधुनिक दुनिया में जहां सौंदर्य, आत्मविश्वास और स्पष्ट दृष्टि की विशेष भूमिका है, लेजर तकनीक ने आंखों के चश्मे की समस्या को बहुत हद तक समाप्त कर दिया है। यह चिकित्सा विज्ञान की एक अनमोल देन है। लेकिन इसे अपनाने से पहले पूरी जानकारी, सटीक जांच और विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श बेहद आवश्यक है।
आंखें अनमोल हैं — इनकी सुरक्षा ही जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।
(यह लेख विशेष संवाददाता सुरेन्द्र कुमार रंजन द्वारा शंकर नेत्रालय, चेन्नई के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अदिति जौहरी से विशेष बातचीत पर आधारित है।)
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