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कबीर की तरह अक्खड़ और फक्कड़ किंतु जीवंत कवि थे नागार्जुन

कबीर की तरह अक्खड़ और फक्कड़ किंतु जीवंत कवि थे नागार्जुन

  • जयंती की पूर्व संध्या पर साहित्य सम्मेलन ने किया श्रद्धापूर्वक स्मरण, आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन
पटना, २९ जून। बाबा नागार्जुन एक जीवंत कवि थे। काव्य के पर्यायवाची थे। यह उनको देख कर ही समझा जा सकता था। संतकवि कबीर की तरह अक्खड़ और फक्कड़! खादी की मोटी धोती और गंजीनुमा कुर्ता! वह भी मोटे खादी का। बेतरतीब बिखरे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और उसमें भी छोटा क़द ! उन्हें एक विचित्र सा, किंतु स्तुत्य व्यक्तित्व प्रदान करता था। एक निरन्तर गतिमान, महात्मा बुद्ध के "बहुजन हिताए,बहुजन सुखाए, लोकानुकंपाए, चरैवेति! चरैवेति!” के प्रत्यक्ष उदाहरण थे बाबा! इसलिए कहीं एक जगह ठहर नहीं सकते थे।
यह बातें रविवार को बाबा की जयंती की पूर्व संध्या पर, साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि नागार्जुन जो थे, वही उनकी कविता भी थी। जो देखा, जो सुना, जो भोगा, वही लिखा! उन्हीं यथार्थ को लोकरंजक शब्द दिए। कभी इस बात की परवाह नही की कि, कौन, कब रूष्ट हो जाएगा! उन्हें किसी 'पद्म-श्री' या 'पद्म-विभूषण' की अभिलाषा नहीं थी। वे तो एक महान संत थे। वितरागी! महापुरुष! उन्हें संसार से भला चाहिए क्या था! वह संसार को सच्चाई का मार्ग दिखाने आए थे । खरी-खरी, मगर प्रेम से कहकर, अपने तई अपने मन की सारी बातें, कबीर की भाँति, कह कर चले गए। हमारे लिए छोड़ गए साहित्य का एक विशाल भंडार, जिसका अवलंब लेकर हम समाज को श्रेष्ठ बनाने का उद्यम कर सकते हैं।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के साहित्यमंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि बाबा नागार्जुन एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने काग़ज़-लिखी नहीं, आँखन-देखी को अपनी रचनाओं का विषय बनाया। उन्होंने हिन्दी और मैथिली, दोनों ही भाषाओं में विपुल लेखन किया। वे सच्चे अर्थों में जनकवि थे।
सम्मेलन के विद्वान उपाध्यक्ष डा उपेंद्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि बाबा नागार्जुन एक ऋषि-तुल्य साहित्यकार थे। एक तपस्वी की भाँति उन्होंने लोक-कल्याण की भावना से साहित्य का सृजन किया। उन्होंने एक सच्चे जनकवि की भाँति साहित्य में अपनी अलग राह बनायी और उस पर चले।
सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा पुष्पा जमुआर, विभा रानी श्रीवास्तव, ईं अशोक कुमार, डा मनोज गोवर्धनपुरी, बाँके बिहारी साव तथा प्रो सुशील कुमार झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि डा रत्नेश्वर सिंह, गीत के चर्चित कवि आचार्य विजय गुंजन, ओम् प्रकाश पाण्डेय 'बदनाम', शायरा शमा कौसर 'शमा', डा पूनम देवा, डा शालिनी पाण्डेय, एम के मधु, डा मीना कुमारी परिहार, डा ऋचा वर्मा, बी डी उपाध्याय, दिव्या राज चौहान, अरविंद कुमार वर्मा, इन्दुभूषण सहाय, बिन्देश्वर प्रसाद गुप्ता, प्रेरणा प्रिया,नीरव समदर्शी आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

सम्मेलन के भवन अभिरक्षक प्रवीर कुमार पंकज, ललिता पाण्डेय, नन्दन कुमार मीत, रीतेश कुमार, प्रिंस कुमार पाण्डेय आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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