पटना सिटी के कंगन घाट पर मां गंगा की प्रतिमा के अपमान पर उठे तीखे सवाल, श्रद्धालुओं में आक्रोश

पटना – गंगा आराधना की परंपरा और श्रद्धा की पराकाष्ठा का प्रतीक रहा 11 दिवसीय गंगोत्सव इस वर्ष पटना सिटी के कंगन घाट पर जिस भव्यता से आयोजित किया गया था, उसकी चर्चा न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हुई। 41 फीट ऊँची मां गंगा की भव्य प्रतिमा का निर्माण, मंत्रोच्चार के साथ उनकी प्राण प्रतिष्ठा, देश-विदेश के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला—यह सब एक अलौकिक अनुभव रहा। लेकिन इस पुण्य अवसर के अंत में जो दृश्य सामने आया, उसने न केवल श्रद्धालुओं की भावना को आहत किया बल्कि सनातन परंपरा को भी गहरी चोट पहुंचाई।
जहां एक ओर 11 दिनों तक मां गंगा की प्रतिमा की विधिवत पूजा-अर्चना की गई, वहीं दूसरी ओर गंगोत्सव के समापन के बाद उस प्रतिमा को सम्मानपूर्वक विसर्जित करने या संरक्षित करने के बजाय उस पर बुलडोजर चलवा दिया गया। यह दृश्य जिसने भी देखा, उसकी आत्मा कांप उठी।
सवाल यह है कि आखिर क्यों मां गंगा की प्रतिमा को इस प्रकार से खंडित किया गया?
क्या आयोजकों के पास प्रतिमा के समापन के लिए कोई योजना नहीं थी?
क्या यह आयोजन केवल दिखावा था—श्रद्धा और धर्म की आड़ में प्रसिद्धि बटोरने का एक साधन?
इस पूरे प्रकरण से आहत श्रद्धालु और सनातन धर्म के अनुयायी पूछ रहे हैं:
“जब हमारे देश में विधर्मी मूर्तियाँ तोड़ते हैं, तब हम आक्रोश में सड़कों पर उतर आते हैं, आंदोलन करते हैं। लेकिन जब हमारे ही धर्म के लोग मां गंगा की प्रतिमा का अपमान करें, तो हम मौनदर्शक क्यों बने रहते हैं?”
गंगा आराधना केवल आयोजन नहीं, यह भारत की सनातन परंपरा की आत्मा है। मां गंगा स्वयं साक्षात देवी मानी जाती हैं, जिनकी पूजा सदियों से हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है। इस घटना से उपजे जनाक्रोश का मुख्य कारण यही है कि आयोजन करने वालों ने जिस श्रद्धा और भव्यता से मां गंगा की प्रतिमा को स्थापित किया, उसी श्रद्धा से उसे सम्मानपूर्वक विदा क्यों नहीं किया?
धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने जताई कड़ी आपत्ति
धार्मिक संगठनों, साधु-संतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और श्रद्धालु नागरिकों ने इस घटना को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और अपमानजनक बताया है। उनका कहना है कि इस कृत्य से न केवल गंगा आराधना की गरिमा को ठेस पहुंची है, बल्कि देश की धार्मिक आस्थाओं का भी उपहास किया गया है।
दोषियों पर कार्रवाई की मांग
अब यह मांग जोर पकड़ रही है कि:
आयोजक मंडल सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगे
प्रतिमा खंडन की जिम्मेदारी तय की जाए
भविष्य में ऐसे आयोजनों के लिए स्पष्ट धार्मिक दिशानिर्देश बनाए जाएं
प्रतिमा विसर्जन या विस्थापन के लिए वैकल्पिक योजनाएं सुनिश्चित की जाएं
निष्कर्ष:
गंगोत्सव केवल सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, यह मां गंगा के प्रति श्रद्धा का पर्व है। यदि हम अपने आराध्य देवताओं के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार नहीं कर सकते, तो हमारी पूजा-पद्धति केवल एक दिखावा रह जाएगी।
मां गंगा का यह अपमान न केवल भावनाओं को आहत करता है, बल्कि हमारी धार्मिक चेतना और उत्तरदायित्व को भी कठघरे में खड़ा करता है। यह समय आत्मचिंतन का है—कि हम धर्म की रक्षा कर रहे हैं या केवल धर्म के नाम पर दिखावा? गंगा मईया क्षमा करें... पर यह पाप क्षम्य नहीं है।
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