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शाकद्वीपीय समाज में विजातीय विवाह: एक उभरती विकृति और सांस्कृतिक असंतुलन

शाकद्वीपीय समाज में विजातीय विवाह: एक उभरती विकृति और सांस्कृतिक असंतुलन

डॉ राकेश दत्त मिश्र
भारतवर्ष की संस्कृति विविधता से भरपूर रही है, जहाँ प्रत्येक समुदाय, जाति, परंपरा और गोत्र की अपनी एक विशिष्ट पहचान रही है। इन सभी पहचानों में शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज एक अत्यंत विशिष्ट स्थान रखता है। यह समाज अपनी धार्मिक परंपराओं, संस्कारों, और विशुद्ध वैदिक अनुशासन के लिए जाना जाता है। परंतु आज, आधुनिकता और पाश्चात्य प्रभाव के कारण इस समाज में कुछ ऐसी सामाजिक विकृतियाँ जन्म ले रही हैं, जो इसकी मूल पहचान और परंपरा के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं। इन्हीं में से एक है – विजातीय विवाह।

विजातीय विवाह, अर्थात अन्य जातियों अथवा परंपराओं से बाहर विवाह करना, आज शाकद्वीपीय समाज के लिए एक गहरी चुनौती बन चुका है। यह न केवल धार्मिक मर्यादाओं का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने और वंश परंपरा को भी क्षतिग्रस्त कर रहा है।

शाकद्वीपीय ब्राह्मण: एक सांस्कृतिक परिचय


शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की उत्पत्ति का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवपूर्ण है। यह समाज सूर्योपासक रहा है, और इनकी पूजा पद्धति में भगवती किल देवी और सूर्यनारायण की आराधना विशेष स्थान रखती है। काशी, गया, और मिथिला जैसे धार्मिक स्थलों पर इनकी प्रतिष्ठा पूजनीय रही है।

शाकद्वीपीय समाज का संपूर्ण जीवनचक्र – जन्म से लेकर मृत्यु तक – वैदिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। इनके 16 संस्कार, यज्ञ, तप, और संयमित जीवनशैली समाज में आदर्श मानी जाती रही है।

विजातीय विवाह: अर्थ एवं परिप्रेक्ष्य


विजातीय विवाह से तात्पर्य है – किसी अन्य जाति, परंपरा, या धर्म में विवाह करना, जो पारंपरिक शाकद्वीपीय मर्यादा के विरुद्ध हो। यह विवाह प्रायः प्रेम विवाह या आधुनिक विचारधारा के प्रभाव से होते हैं। इसमें कई बार धर्मांतरण या परंपराओं का परित्याग भी शामिल हो जाता है।


इन विवाहों में मुख्य समस्याएँ निम्न प्रकार की होती हैं:

धार्मिक असंगतता – विजातीय कन्या न तो किल देवी की पूजा कर सकती है, न ही सूर्योपासना की प्रक्रिया को समझती है।
संस्कारों में बाधा – विवाह, गर्भाधान, नामकरण, उपनयन, और अंतिम संस्कार जैसे कर्मों में विजातीय सहभागिता से विधि भंग होता है।
वंश परंपरा का संकट – गोत्र, वंश, पितृ ऋण की निरंतरता बाधित होती है।
सामाजिक बहिष्कार – परिवार व समाज ऐसे युगलों को स्वीकार नहीं करता, जिससे सामाजिक विघटन होता है।

धार्मिक दृष्टिकोण: किल देवी की पूजा का महत्व


शाकद्वीपीय समाज की प्रत्येक स्त्री को विवाह के पश्चात अपने पति के कुल की कुलदेवी – किल देवी की उपासना करनी होती है। यह उपासना केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण का माध्यम भी है। विजातीय कन्या, जो किल देवी की महिमा और विधि को न जानती हो, वह इस पूजा में न तो भाग ले सकती है, न ही सही आचरण कर सकती है। इससे न केवल पूजा का अपमान होता है, बल्कि कुल में आने वाली संतानों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

गोत्र और वंश परंपरा की महत्ता


भारतीय परंपरा में गोत्र का अत्यंत महत्व है। गोत्र न केवल एक पहचान है, बल्कि यह ऋषि परंपरा का प्रतीक भी है। शाकद्वीपीय समाज में गोत्र के अनुसार विवाह होते हैं ताकि वंश की शुद्धता बनी रहे। विजातीय विवाह इस व्यवस्था को नष्ट कर देता है। बच्चों का गोत्र अस्पष्ट हो जाता है और उन्हें समाज में उनकी मूल पहचान नहीं मिलती। ऐसे बच्चे न तो यज्ञ में भाग ले सकते हैं, न ही पितृ तर्पण योग्य माने जाते हैं।

समाज पर पड़ने वाला प्रभाव


विजातीय विवाहों का समाज पर बहुआयामी प्रभाव पड़ता है:
धार्मिक आयोजनों में विघ्न – कुल पूजा, श्राद्ध, यज्ञ, और व्रतों में विजातीय कन्या की भागीदारी अस्वीकार्य होती है।
नव पीढ़ी की पहचान संकट में – बच्चे न तो पूरी तरह शाकद्वीपीय रहते हैं, न ही उस विजातीय संस्कृति के।
परिवारों में टूटन – माता-पिता और संतान के बीच भावनात्मक दूरी बनती है।
विवाह योग्य कन्याओं की संख्या में असंतुलन – विजातीय विवाहों से समाज की योग्य कन्याओं को योग्य वर नहीं मिलते।

आधुनिकता बनाम परंपरा: एक द्वंद्व

आज का युवा वर्ग स्वतंत्रता, प्रेम और समानता के नाम पर पारंपरिक व्यवस्थाओं को चुनौती दे रहा है। सोशल मीडिया, वैश्विक संपर्क और पाश्चात्य जीवनशैली ने इस प्रवृत्ति को बल दिया है। परंतु यह समझना आवश्यक है कि स्वतंत्रता का अर्थ परंपरा का परित्याग नहीं है। परंपरा हमें जड़ों से जोड़ती है, और वही हमारी पहचान का मूल स्रोत है।

विजातीय विवाह को प्रेम का नाम देकर उसकी धार्मिक असंगति को अनदेखा करना शाकद्वीपीय संस्कृति का अवमूल्यन है। आधुनिकता को अपनाइए, लेकिन अपने मूल को नहीं भूलिए।

समाज की भूमिका

समाज को सजग, संयमित और सतर्क भूमिका निभानी होगी:
युवाओं को वैदिक शिक्षा से जोड़ना – विवाह पूर्व गोत्र, कुल, कुलदेवी, और पितृपरंपरा का ज्ञान दिया जाना चाहिए।
समूह विवाह और परिचय सम्मेलन – युवक-युवतियों के बीच परिचय बढ़ाने हेतु समाज को ऐसे कार्यक्रम नियमित आयोजित करने चाहिए।
विजातीय विवाह करने वालों से संवाद – उनका परित्याग नहीं, अपितु वैचारिक समझ बढ़ाने का प्रयास होना चाहिए।
पारिवारिक संस्कारों का संचार – परिवार को अपने बच्चों में संस्कार बचपन से देने चाहिए।

परंपरा की रक्षा ही सच्चा आधुनिकता है

शाकद्वीपीय समाज का इतिहास त्याग, तप, और वैदिक ज्ञान से भरा पड़ा है। यह समाज सदा धर्म का रक्षक रहा है, और इसी धर्म की रक्षा के लिए आज भी उसे विजातीय विवाह जैसी विकृतियों से संघर्ष करना होगा।

विजातीय विवाह मात्र एक निजी निर्णय नहीं, यह पूरे वंश, समाज और धर्म की अखंडता से जुड़ा विषय है। समाज को न केवल इससे सतर्क रहना चाहिए, बल्कि समय रहते समुचित उपायों द्वारा इसे रोकने का प्रयास भी करना चाहिए।

वर्तमान पीढ़ी से अपेक्षा है कि वह प्रेम को धर्म से ऊपर न रखे, बल्कि धर्म में रहकर ही प्रेम की परिभाषा गढ़े। तभी शाकद्वीपीय समाज अपनी पहचान, अपनी परंपरा, और अपनी आध्यात्मिक धारा को अक्षुण्ण बनाए रख सकेगा।

निवेदन आज आवश्यकता है कि हम भावनाओं में बहने की बजाय विवेक से निर्णय लें। विजातीय विवाह के दूरगामी परिणामों को समझें और अपने बच्चों को अपनी परंपरा से जोड़ें। यह न केवल एक पारिवारिक कर्तव्य है, बल्कि समाज और धर्म के प्रति उत्तरदायित्व भी है।

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