गयाजी में ब्राह्मणों की राजनैतिक भागीदारी और सामाजिक चेतना पर विमर्श: डॉ. राकेश दत्त मिश्र व डॉ. विवेकानंद मिश्र के बीच हुआ गहन संवाद

गयाजी (बिहार), 18 जून:
गयाजी की ऐतिहासिक धरती पर सोमवार को एक महत्वपूर्ण वैचारिक संवाद आयोजित हुआ, जिसमें देश के प्रख्यात चिंतक एवं समाजसेवी डॉ. राकेश दत्त मिश्र और वरिष्ठ शिक्षाविद व समाज विश्लेषक डॉ. विवेकानंद मिश्र के बीच समसामयिक राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर गहन विमर्श हुआ। यह संवाद न केवल बिहार की वर्तमान राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण था, बल्कि समाज में बौद्धिक चेतना और जागरूकता की नई लहर की नींव भी बना।
ब्राह्मणों की राजनैतिक उपेक्षा बना प्रमुख विषय

बिहार की राजनीति में युवाओं की भूमिका पर बल
संवाद में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की पृष्ठभूमि पर भी चर्चा हुई। डॉ. विवेकानंद मिश्र ने राज्य की सामाजिक संरचना, जनता की बदलती प्राथमिकताओं और शासन की कार्यशैली पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि अब जनता केवल वादे नहीं, परिणाम चाहती है। उन्होंने सामाजिक न्याय के नाम पर हो रही नीतिगत राजनीति की आलोचना करते हुए बौद्धिक सहभागिता और समरसता आधारित विकास पर ज़ोर दिया।
वहीं, डॉ. राकेश दत्त मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि अब समय आ गया है कि युवा वर्ग राजनीति को मात्र नारों की लड़ाई नहीं, बल्कि नीतियों के युद्ध के रूप में समझे। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और स्वदेशी विचारधारा को राज्य के विकास की धुरी मानते हुए युवाओं से आह्वान किया कि वे संगठित होकर सकारात्मक राजनीति में भाग लें।
सभा में कई गणमान्य व्यक्तियों की सहभागिता
इस विशेष संवाद में गया की कई प्रतिष्ठित हस्तियों की भी गरिमामयी उपस्थिति रही। प्रमुख रूप से प्रसिद्ध समाजसेवी डॉ. मृदुला मिश्रा, संध्या मिश्रा, मेघा मिश्रा, वरिष्ठ अधिवक्ता अपर्णा मिश्रा, एवं श्रुति मिश्रा ,झारखंड प्रदेश के बड़े नेताओं में एक दयानंद मिश्रा ज्योतिष एवं शिक्षा शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर ज्ञानेश्वर भारद्वाज देवेंद्र कुमार और विवेकानंद मिश्रा अमरनाथ पांडे राकेश पांडे भाजपा के वरिष्ठ नेता हरि नारायण त्रिपाठी अरुण ओझा आदि |ने अपने विचार रखते हुए सांस्कृतिक पुनर्जागरण, नारी सशक्तिकरण, और नैतिक नेतृत्व की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
संवाद का सामाजिक संदेश
यह संवाद किसी औपचारिक मुलाकात से कहीं अधिक था। यह भविष्य की दिशा तय करने वाला विमर्श था, जिसमें विचारों की गहराई, सामाजिक सरोकारों की गंभीरता और आने वाले समय की तैयारी झलक रही थी। डॉ. मिश्रद्वय ने स्पष्ट किया कि यदि राजनीति से संस्कार, शुचिता और सिद्धांत गायब हो गए, तो लोकतंत्र केवल संख्या का खेल बन जाएगा।
इस प्रकार के संवादों की आज अत्यंत आवश्यकता है, जो समाज को केवल आलोचना ही नहीं, बल्कि सामूहिक समाधान की ओर अग्रसर करें। यह विमर्श बिहार की राजनीति में एक नई सोच, बुद्धिजीवी नेतृत्व और सांस्कृतिक चेतना की ओर बढ़ता हुआ एक सार्थक कदम था। उम्मीद है कि यह विचार मंथन आने वाले समय में बिहार के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को एक नई दिशा देगा, जहाँ सत्ता नहीं, सेवा ही राजनीति का उद्देश्य बने।
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