कलम की निष्ठा का सम्मान: जितेन्द्र कुमार सिन्हा को 'हिन्द चक्र' का विशेष प्रशस्ति पत्र
— डॉ. राकेश दत्त मिश्र
जब लेखनी बन जाए मशाल
समय-समय पर इतिहास कुछ ऐसे व्यक्तित्वों को जन्म देता है, जिनकी लेखनी केवल शब्दों का संकलन नहीं होती, बल्कि वह समाज की आत्मा को स्वर देती है। पत्रकारिता और विचारधारा के बदलते दौर में, जब लेखन अपने मूल उद्देश्यों से विचलित होता प्रतीत होता है, ऐसे समय में जितेन्द्र कुमार सिन्हा जैसे विचारशील लेखक की उपस्थिति न केवल आवश्यक है, बल्कि आवश्यकताओं से भी परे जाकर प्रेरणास्पद बन जाती है।
वर्तमान समय में, जब निष्पक्ष लेखन और निडर दृष्टिकोण एक दुर्लभ गुण बनता जा रहा है, तब “हिन्द चक्र (Hind Chakra)” जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका द्वारा जितेन्द्र कुमार सिन्हा को Certificate of Appreciation प्रदान किया जाना, न केवल उनके लेखन के प्रति सम्मान है, बल्कि समाज के उन अनगिनत विचारशील नागरिकों को भी प्रेरणा देता है, जो सत्य के पथ पर कलम उठाने की हिम्मत रखते हैं।
एक लेखनी, अनेक आयाम: जितेन्द्र कुमार सिन्हा का वैचारिक संसार
जितेन्द्र कुमार सिन्हा केवल एक लेखक नहीं हैं। वे विचारों के शिल्पकार हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक चेतना को दिशा दी है। चाहे वह राजनीतिक व्यवस्था की नीतिगत आलोचना हो, सामाजिक समस्याओं की पड़ताल हो या फिर सांस्कृतिक मूल्यों की पुनरस्थापना—उनका लेखन हर बार एक नई सोच को जन्म देता है।
उन्होंने लेखन को कभी निजी लोकप्रियता का साधन नहीं बनाया, बल्कि उसे समाज की वेदना और विवेक का दर्पण बनाया। उनके लेखों में गांव का ठेठपन, शहर की व्यस्तता, सत्ता की चालाकी, जनता की पीड़ा, और बदलाव की पुकार—इन सभी को एक संतुलित और सुसंस्कृत स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है।
'हिन्द चक्र' का सम्मान: एक लेखक की निष्ठा की स्वीकृति
“हिन्द चक्र (Hind Chakra)” जैसी पत्रिका, जो वर्षों से हिंदी और अंग्रेजी में समाज, साहित्य, राजनीति और संस्कृति पर गंभीर सामग्री प्रस्तुत कर रही है, जब किसी लेखक को सम्मानित करती है, तो वह सम्मान केवल एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि विचारशीलता और निर्भीक अभिव्यक्ति को समर्पित होता है।
जितेन्द्र कुमार सिन्हा को यह प्रशस्तिपत्र केवल एक औपचारिक घोषणा नहीं है, यह उस श्रम, समर्पण और सतत वैचारिक संघर्ष की सार्वजनिक स्वीकृति है, जिसे वे वर्षों से करते आ रहे हैं। इस प्रमाण पत्र में उनकी लेखनी की स्पष्टता, विवेकशीलता, तथ्यों पर आधारित विश्लेषण और सामाजिक प्रतिबद्धता को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।
विचारधारा के बीच संतुलन का अद्भुत उदाहरण
वर्तमान भारत में जब लेखन और पत्रकारिता अक्सर वैचारिक कट्टरता या पक्षपातपूर्ण राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती है, तब जितेन्द्र कुमार सिन्हा का लेखन इन दोनों से अलग एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। वे किसी विचारधारा विशेष के समर्थक या विरोधी नहीं दिखते, बल्कि सत्य, न्याय और जनहित के पक्षधर दिखते हैं।
उनकी लेखनी सत्ता के गलियारों में अनसुनी रह जाने वाली आवाज़ों को जगह देती है। वे विरोध करते हैं, पर घृणा से नहीं; वे समर्थन करते हैं, पर अंधभक्ति से नहीं। यही कारण है कि उनका लेखन केवल शब्द नहीं, समाज का संवाद बनता है।
लेखन, जो आंदोलन बन गया
सच्चा लेखन वही होता है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करे, और जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम ठीक यही करती है। उनके लेखों ने बिहार और देश भर में सामाजिक मुद्दों को विमर्श का विषय बनाया है।
जातीय समीकरणों के दुष्परिणाम, शिक्षा व्यवस्था की विसंगतियाँ, शहरीकरण के प्रभाव, राजनीति में नैतिकता की गिरावट, लोकतंत्र और मीडिया की भूमिका, और संविधान की आत्मा की रक्षा जैसे विषयों पर उनके लेख पाठकों को झकझोरते हैं।
उनके लेखन में एक आंदोलनकारी तेवर है—पर यह आंदोलन सड़क पर नहीं, बल्कि चेतना के भीतर चलता है।
पत्रकारिता का नया प्रतिमान: निष्पक्षता और नैतिकता
जितेन्द्र कुमार सिन्हा के लेखन में हमें एक दुर्लभ संयोग मिलता है—नैतिकता और निर्भीकता का। वे न तो बिकते हैं, न झुकते हैं। उनके लेखों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे न किसी को खुश करने के लिए लिखते हैं, न डर के मारे चुप रहते हैं।
वर्तमान दौर में जब पत्रकारिता ‘टीआरपी’ और ‘वायरल कंटेंट’ के नाम पर अपनी गरिमा खो रही है, जितेन्द्र कुमार सिन्हा का लेखन पत्रकारिता को उसकी असल परिभाषा से जोड़ता है—सत्य की खोज, जनहित की रक्षा, और समाज में विवेक की स्थापना।
'दिव्य रश्मि' में उपसम्पादक के रूप में विशेष योगदान
'दिव्य रश्मि' पत्रिका, जो अपने धार्मिक, सामाजिक और वैचारिक लेखों के लिए जानी जाती है, उसमें उपसम्पादक के रूप में जितेन्द्र कुमार सिन्हा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। वे न केवल विषयों का चयन करते हैं, बल्कि उनमें वैचारिक गहराई और संवेदनशीलता भी भरते हैं।
उनके आलेखों में न तो भाषाई चमत्कारों का दिखावा होता है, न ही विचारों की जटिलता; बल्कि सादगी, सत्य और समाज की पीड़ा की प्रतिध्वनि होती है। वे सरल भाषा में गंभीर विचार प्रस्तुत करते हैं, जिससे पाठक सहजता से गहराई में उतर पाते हैं।
सम्मान की भूमिका: प्रेरणा का बीज
किसी लेखक को दिया गया सम्मान केवल उसकी उपलब्धियों का उत्सव नहीं होता, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आदर्श का निर्माण भी करता है। “हिन्द चक्र” द्वारा जितेन्द्र कुमार सिन्हा को दिया गया यह प्रमाण-पत्र, उन्हीं भावों को पुष्ट करता है।
यह सम्मान एक सशक्त संकेत है कि अब भी समाज में ऐसे मंच हैं जो सच्चे लेखन को पहचानते हैं, और यह भी कि लेखनी, यदि निष्पक्ष और ईमानदार हो, तो वह सत्ता से भी अधिक प्रभावशाली बन सकती है।
समाज के प्रति प्रतिबद्धता: कलम का सामाजिक दायित्व
सिन्हा जी के लेखों की एक विशिष्टता यह भी है कि वे केवल घटनाओं की रिपोर्टिंग नहीं करते, बल्कि उनके सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष को भी उजागर करते हैं। वे मानते हैं कि लेखक की भूमिका केवल तटस्थ पर्यवेक्षक की नहीं है, बल्कि वह समाज के अंदर झांकने वाला एक सजग प्रहरी है।
उन्होंने बार-बार अपने लेखों में यह सिद्ध किया है कि विचार केवल बहस के लिए नहीं होते, वे समाज को दिशा देने के लिए होते हैं। इस कारण उनका लेखन बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों, छात्रों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं में एक समान लोकप्रिय है।
अंतिम विचार: लेखनी का अविरल प्रवाह
जितेन्द्र कुमार सिन्हा का यह सम्मान केवल उनके लेखन की एक मंज़िल नहीं, बल्कि एक नई यात्रा की शुरुआत है। यह उस धारणा को बल देता है कि जब कलम सच्चाई के साथ चले, तो वह सत्ता को आईना दिखा सकती है और समाज को एक नई चेतना दे सकती है।
उनकी यह उपलब्धि 'दिव्य रश्मि' परिवार के लिए भी गौरव का क्षण है, जो ऐसे प्रतिबद्ध लेखकों को मंच प्रदान करता है। आने वाली पीढ़ियाँ उनके लेखों से यह सीखेंगी कि लेखन केवल मनोरंजन या अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन की एक सशक्त प्रक्रिया है।
एक दीप, अनेक राहें
'हिन्द चक्र' का यह प्रशस्तिपत्र जितेन्द्र कुमार सिन्हा की उस यात्रा का एक स्वर्णिम पड़ाव है, जिसमें वे सत्य, विवेक, और समाज कल्याण की राह पर निष्ठा और धैर्य के साथ निरंतर अग्रसर हैं।
हम इस शुभ अवसर पर उन्हें हार्दिक बधाई देते हैं और यह आशा करते हैं कि उनकी कलम आने वाले वर्षों में भी समाज को जागरूक, सजग और संगठित करती रहेगी।
यह सम्मान जितेन्द्र कुमार सिन्हा का नहीं, उन तमाम विचारशील कलमकारों का है, जो निडरता के साथ सत्य का पक्ष लेते हैं। हम “हिन्द चक्र” की इस पहल को नमन करते हैं और 'दिव्य रश्मि' परिवार की ओर से जितेन्द्र जी को सादर शुभकामनाएँ देते हैं।
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