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तमिलनाडु के तट पर मिला - 8 फीट लंबा - 'ईथर ओरफिश' - जापानी मानते हैं “प्रलय का संकेत”

तमिलनाडु के तट पर मिला - 8 फीट लंबा - 'ईथर ओरफिश' - जापानी मानते हैं “प्रलय का संकेत”


दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से

दुनिया के विभिन्न समुद्री तटों पर इन दिनों एक रहस्यमयी जीव ने हलचल मचा दिया है वह है- 'ईथर ओरफिश'। जापानी संस्कृति में इसे ‘प्रलय की मछली’ कहा जाता है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसे जलवायु परिवर्तन का द्योतक माना जाता है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत के तटों पर इस दुर्लभ मछली दिखाई देने से एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या यह सच में किसी बड़े प्राकृतिक संकट की पूर्व सूचना है या फिर विज्ञान की नजर में यह मात्र एक संयोग?


ईथर ओरफिश (Regalecus glesne), जिसे "किंग ऑफ हेरिंग" भी कहा जाता है, समुद्र की गहराइयों में पाई जाने वाली दुनिया की सबसे लंबी हड्डीदार मछलियों में से एक है। इसकी लंबाई आमतौर पर 3 से 8 मीटर लंबा होता है। इसका शरीर सिल्वर, बैंगनी-नीले और लाल रंगों में चमकता है। इसका शरीर पतला, रिबन जैसा होता है और सिर पर लाल रंग की लंबी पंखनुमा रचना होता है। न्यूजीलैंड के ते पापा टोंगरेवा संग्रहालय के क्यूरेटर एंड्रयू स्टीवर्ट के अनुसार, "यह मछली दूसरी दुनिया की किसी जीव जैसी लगती है- अलौकिक, अद्भुत और भयावह।"


जापान और उसके आस-पास के देशों में ईथर ओरफिश को शुभ संकेत नहीं माना जाता है। वहां की लोककथाओं में इसे ‘नमाजू’ या ‘धरती हिलाने वाली मछली’ से जोड़ा गया है। 2011 का उदाहरण है कि जब जापान में विनाशकारी भूकंप और सुनामी आई थी, तो उससे कुछ महीने पहले ही जापान के कई समुद्री तटों पर ईथर ओरफिश देखा गया था। जापानी लोग मानते हैं कि समुद्र की गहराई में रहने वाली यह मछली तभी सतह पर आती है जब समुद्र के नीचे कुछ असामान्य गतिविधियां होती हैं- जैसे कि टेक्टोनिक प्लेट्स में हलचल। इसी कारण से इसे “डूम्सडे फिश” या “प्रलय की मछली” की उपाधि दी गई है।
जहां एक ओर आम जनता ईथर ओरफिश को आपदा की चेतावनी मानता है, वहीं वैज्ञानिक समुदाय इसे एक संयोग या प्राकृतिक कारणों का परिणाम मानता है।2019 का शोध अध्ययन के अनुसार, जापान में हुए एक वैज्ञानिक अध्ययन में यह सिद्ध किया गया है कि ईथर ओरफिश की उपस्थिति और भूकंप के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। यह मछली गहराई में रहती है और शायद बीमारी, दिशा भ्रम या समुद्री धाराओं में बदलाव के कारण तटों तक पहुंचती है। प्रोफेसर निक लिंग (वाइकाटो विश्वविद्यालय, न्यूजीलैंड) ने बताया है कि ईथर ओरफिश की जीवनशैली असाधारण है। यह समुद्र में लंबवत लटकी रहती है और खाने का इंतजार करती है। रिसर्च के लिए इसका मिलना बहुत ही दुर्लभ है, क्योंकि यह समुद्र की बहुत गहराई में पाई जाती है- लगभग 200 से 1000 मीटर की गहराई में।


तस्मानिया (ऑस्ट्रेलिया) में हाल ही में एक बड़ी ओरफिश पश्चिमी तट पर मिली थी। न्यूजीलैंड (डुनेडिन और क्राइस्टचर्च) में दो ओरफिश समुद्र तट पर मृत पाई गईं, जिनमें से एक का सिर गायब था। भारत (तमिलनाडु) में मई 2025 में तमिलनाडु के तट के पास मछुआरों ने 8 फीट लंबी ओरफिश को पकड़ा। यह पहली बार था जब भारत में इतनी बड़ी ओरफिश तट पर मिली। इन घटनाओं के साथ लोगों की आशंकाएं भी बढ़ गईं हैं कि क्या यह किसी भविष्य के आपदा की चेतावनी है?


ओरफिश आमतौर पर गहराई में रहती है, जहां तापमान और दबाव दोनों अत्यधिक होते हैं। जैसे ही कोई अचानक परिवर्तन आता है, यह मछली भ्रमित होकर सतह की ओर आती है।
समाज में विज्ञान और मिथक का टकराव कोई नया विषय नहीं है। क्योंकि मिथकीय सोच भय पर आधारित होता है। लोग अनजानी घटनाओं को दैवीय संकेत मानने लगता हैं। वहीं विज्ञान का रवैया होता है कि किसी भी घटना के पीछे ठोस प्रमाण और शोध ढूंढ़ना ही वैज्ञानिक प्रक्रिया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या हमें ऐसी घटनाओं से डरना चाहिए? या फिर हमें इनके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को समझने का प्रयास करना चाहिए?


ओरफिश जैसी मछलियां हमें याद दिलाती हैं कि समुद्र अब भी हमारे लिए एक अनजाना संसार है। समुद्र में 80% क्षेत्र अब भी अनछुआ है। नासा के अनुसार, समुद्र का अधिकांश हिस्सा अभी भी अन्वेषण से परे है। हर वर्ष नई प्रजातियां खोजी जाती हैं:। ओरफिश की तरह कई जीव ऐसे हैं जो कभी-कभी ही सतह पर आते हैं और फिर वर्षों तक नहीं दिखते हैं।

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