वतन के लिए
जीना या मरना है वतन के लिए ,जीवन अर्पित राष्ट्र यतन के लिए ,
राष्ट्र पे ऑंख उठानेवाले सुन ले ,
ये जीवन है अरि पतन के लिए ।
हमने तुम्हें था भ्रात अपनाया ,
मित्रता हेतु था ये हाथ बढ़ाया ,
मुॅंह में राम बगल में छुरी लेकर ,
तुमने हमपे था कहर बरपाया ।
जिसे मैं भाया वह हमें अपनाया ,
हर्षनाद कर हमसे हाथ मिलाया ,
कंधे से कंधा मिलाकर चलना ,
हमारे संग है विश्व को ही भाया ।
जो संग चलेगा उसके संग चलेंगे ,
दुश्मनों को तो दोस्ती ये खलेंगे ,
जलेंगे कड़कती धूप में ये सारे ,
जैसे खौलते तेल स्वयं तलेंगे ।
चलते रहेंगे हम यों ही निरंतर ,
कदम से कदम मिलाकर हम ,
जिनके मन में जो छल ये होगा ,
पिछड़ जाएगा उनका कदम ।
जो मित भ्रात हैं दिल के न्यारे ,
हम निकलेंगे मिलकर ये सारे ,
नव भास्कर फिर उत्पन्न होंगे ,
नई उषा नव किरण उजियारे ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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