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ममता फुआ

ममता फुआ

 जय प्रकाश कुंवर
ममता फुआ अब लगभग सतर साल की बुढ़ी औरत हो गयी हैं। उनके पति को गुजरे दश साल हो गये हैं और ममता फुआ को कोई औलाद भी नहीं है। वो अपने ससुराल के घर में अकेली रहती हैं। पति के गुजर जाने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति भी पहले जैसी नहीं रह गई है और किसी प्रकार अपना गुजर वसर कर पा रही हैं। ममता फुआ का छोटा भाई रमेश अपने गाँव के पुश्तैनी घर को छोड़कर अपने आलीशान मकान में शहर में परिवार के साथ रहता है। अपने माता पिता के जिंदा रहते हुए उनके बुलाने पर ममता फुआ अपने नैहर में अनेक अवसरों पर जाती थी और कुछ दिन वहाँ रहती थी। वो दिन बड़े अच्छे से गुजरते थे। पर माता पिता दोनों के गुजर जाने के बाद ममता फुआ का नैहर जाना बहुत कम हो गया। उसमें भी छोटे भाई रमेश के शहर में मकान बना लेने के बाद लगभग बंद ही हो गया। गाँव के मकान में चूंकि कोई रहने वाला नहीं है, अतः वहाँ ताला लगा हुआ है। वहाँ शहर में भाई रमेश के घर में हमेशा चहल पहल रहती है क्योंकि उसके परिवार में उसकी पत्नी के अलावा उसके दो बेटे और एक बेटी है। आज यहाँ रमेश के शहर वाले घर में लोगों और रिश्तेदारों का जमावड़ा लगा हुआ है और बैंड बाजा तथा शहनाईयां बज रही हैं क्योंकि आज उसके बड़े लड़के की शादी है और थोड़ी देर बाद धुमधाम से उसकी बारात निकलने वाली है। इधर अपने ससुराल के गाँव के सुनसान घर में अकेले पड़े हुए ममता फुआ सुबक सुबक कर रो रही हैं। आज न उनको कोई ढाढस बंधाने वाला है और नहीं कोई उनका आंसू पोंछने वाला है। यह होता है अपना अपना भाग्य। आज उनका छोटा भाई काफी संपन्न है और उसके घर में खुशी का माहौल है, फिर भी इस खुशी के मौके पर अपनी सगी बहन को अपने भतीजा के शादी में सरीख होने के लिए गाँव से कोई व्यवस्था कर अथवा कोई सवारी तथा आमंत्रण भेज बुलाया नहीं गया है। इधर ममता फुआ कैसी सरल हृदय और अपने भाई भतीजा से अथाह प्रेम करने वाली औरत हैं, जो मात्र भतीजा के शादी का खबर पाकर शादी में जाने के लिए आमंत्रण की इंतजार और अपने क्षमता अनुसार सारी तैयारियां कर के बुलाने का इंतजार कर रही हैंऔर आंसू बहाये जा रही हैं।
हमारे भारतवर्ष में विशेष कर ग्रामीण क्षेत्र में हमेशा से कुछ समाजिक और प्रचलित प्रथायें और मान्यतायें रहीं हैं, जिसका अनुपालन समाज का हर वर्ग करता था। शादी के बाद लड़की जब ब्याह कर अपने पिता के घर से ससुराल जाती थी तब उसकी बिदाई शुभ मुहूर्त में पालकी अथवा डोली में बैठा कर पर्दा लगा कर किया जाता था। एक बार अपने ससुराल जाने के बाद जब लड़की को किसी मौके पर पुनः अपने नैहर आना होता था तब शुभ दिन पंडित से निकलवा कर पहले दिन धराई होता था। फिर उस दिन लड़की के परिवार का कोई सदस्य डोली पालकी अथवा कोई अन्य सवारी लेकर उसे उसके ससुराल से अपने घर लाता था। और इसी प्रकार नैहर तथा ससुराल से लड़की का आना जाना होता था। शादी ब्याह हो जाने के बाद कोई लड़की चाहे उसका उम्र कितना भी अपने जीवन में हो जाए, बिना बुलाये और सवारी मुहैया कराये अपने नैहर तथा ससुराल में नहीं आती जाती थी। यह हमारे समाज की मान्य परंपरा और प्रथा थी।
धीरे धीरे समय बदलता गया और डोली पालकी के स्थान पर अब लड़की की पहली बिदाई के बाद दुसरी तिसरी बिदाईयां बैल गाड़ी अथवा टायर गाड़ी में छाजन और पर्दा लगा कर होने लगी। समय इससे भी आगे बढ़ा तो उपलब्धि अनुसार गाँव देहात में भी लड़की की बिदाई मोटर गाड़ी, कार आदि में होने लगी। परंतु लड़की के बिदाई के लिए दोनों तरफ से शुभ दिन निकलवाना और बुलाने तथा सवारी भेजने का प्रथा ज्यों का त्यों कायम रहा। बिना बुलाये और बिना सवारी तथा घर का कोई सदस्य भेजे, लड़की के लिए उसका आना जाना अपमान माना जाता है। इससे लड़की के उम्र का कोई संबंध नहीं है। लड़की चाहे बेटी हो, बहन हो या फिर उम्र दराज फुआ ही क्यों न हो। हाँ एक बात जरूर बदला है कि नयी ब्याहता लड़की के अलावा अन्य लड़कियों के लिए अब जरूरत के मुताबिक दिन सुदिन नहीं दिखाया जाता है। वो किसी भी दिन बुलावे अनुसार अब आती जाती हैं।
भारतीय आबादी अब गाँव देहात से शहर तक फैलने के चलते कुछ बदलाव और भी देखने को मिलता है कि पहले जैसे संबंधियों के घर पर नाऊ भेजकर तथा स्वयं जाकर निमंत्रण दिया जाता था सो अब उस विधि से भी तथा पत्र भेजकर अथवा दूर दराज मोबाईल फोन के माध्यम से निमंत्रण भेजा जा रहा है। पर आज भी बिना बुलाये आने जाने को अपमान समझा जाता हैं। खासकर अपने परिवार के बहन, बेटी और फुआ आदि जैसे रिश्ते वाली औरतों के लिए।
अपने छोटे भाई रमेश द्वारा अपने बेटे की शादी का केवल सूचना अपनी बड़ी बहन ममता को किसी माध्यम से दे देना और उसे बुलावा न भेजना ममता के लिए सबसे बड़ा दुख का कारण बन गया था। आज वो महशुस कर रही थी कि उसके माता पिता के गुजर जाने के साथ उसे भुला दिया गया और यह सोच सोच कर वह अकेले में सुबक सुबक कर रो रही थी।
अब यही है कुछ हद तक हमारा भारतीय समाज जहाँ माता पिता और पति के नहीं रहने पर और गरीबी अवस्था में पहुँच जाने पर अपना कहे जाने वाले परिवार के एक अंश एक अपने रक्त और असहाय महिला को किस तरह से भुला दिया जा रहा है तथा उसके जीवन काल में ही कैसे उसे अपमानित किया जा रहा है।
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