रिश्तों की बोझ
जय प्रकाश कुंवर
माधवी को आज बहुत तेज़ बुखार है। वह अपने बिस्तर पर चादर ओढ़ कर लेटी हुई है और कराह रही है। माधवी का परिवार एक भरा पुरा परिवार है, जिसमें उसके दो बेटे अपने पत्नियों और बेटों, बेटियों के साथ रहते हैं। माधवी के पोते पोतियां भी बड़ी होकर शादी ब्याह के योग्य हो गईं हैं। माधवी के पति एक सरकारी विभाग में नौकरी करते थे और अब उनके सेवा निवृत्ति को लगभग बीस साल हो गये हैं। पहले के दिनों में लड़की लड़के की शादी ब्याह में उम्र का कोई खास अंतर नहीं रहता था, अतः माधवी पति पत्नी अब दोनों लगभग अस्सी साल के हो चुके हैं। इस उम्र तक जिंदा रहने पर भी तरह तरह की शारीरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और अगर कहीं शरीर बिमार पड़ जाए तो फिर कहना क्या है। बिमारी की इस अवस्था में माधवी के पति महेश के अलावा उसे कोई देखने भी नहीं आ रहा है। माधवी का परिवार इन दिनों मात्र एक छत के नीचे रहने वाला परिवार बन कर रह गया है, लेकिन सही मायने में अब यह परिवार, परिवार कहलाने के योग्य नहीं है। वह परिवार जो एक छत के नीचे एक साथ रहे परंतु कोई किसी के सुख दुख मे काम न आये, वास्तव में परिवार कहलाने के लायक नहीं होता है। आज माधवी के परिवार की भी यही स्थिति है।
माधवी की शादी महेश के साथ लगभग साठ साल पहले बड़े धूमधाम से हुई थी। शादी के दो तीन साल बाद ही महेश ने सरकारी नौकरी में योगदान कर लिया था। तत्पश्चात उनकी शादी के सात साल के अंदर उन्हें दो पुत्र पैदा हुए। दोनों पुत्रों का लालन पालन तथा बड़े होने पर उनकी शिक्षा दिक्षा बहुत ही ढंग से हुई। माधवी ने शादी के बाद से ही अपने पति का पूरा सहयोग करते हुए घर का सारा बोझ अपने सिर पर उठा लिया था। पति की सीमित आय के चलते घर में कोई दाई नौकर नहीं रहता था, अतः घर की साफ सफाई, कपड़े धोना, खाना पकाना, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, आदि घर का सारा काम माधवी को ही करना पड़ता था। माधवी अपने पति का साथ देने वाली एवं एक जबाबदेह कुशल गृहिणी थी।
सांसारिक जबाबदेही निभाते हुए माधवी और महेश ने अपने बेटों के बड़े होने पर दोनों की शादी अपने हैशियत अनुसार बड़े धुमधाम से कर दी। बड़े लड़के राम की शादी राधिका से हुई और छोटे लड़के श्याम की शादी ललिता से हुई। दोनों लड़के अपना अपना व्यवसाय संभालते थे और उन्हें अच्छी आय प्राप्त होती थी। माधवी अपनी दोनों बहुओं को बड़ी लाड़ प्यार से रखती थी और उन्हें अपने माता पिता के घर की कमी महसूस नहीं होने देती थी। उन्हें अभी रसोई घर में भी नहीं जाने देती थी और स्वयं खाना पकाकर पुरे परिवार को खिलाती थी।
धीरे धीरे समय बितता गया और इस बीच राधिका और ललिता को एक एक पुत्र और एक एक पुत्रियाँ पैदा हुईं। माधवी अब दादी बन चुकी थी। माधवी दादी के रहते दोनों बहुओं ने कभी महसूस ही नहीं किया कि बच्चों का लालन पोषण कैसे होता है, क्योंकि माधवी ने सभी पोते पोतियों का मल मूत्र सफाई करना, उनके कपड़े धोना, उन्हें तेल मालिश करना आदि सारा काम अपने सिर ले रखा था। जब पोते पोती बड़े होकर स्कूल जाने लगे तब भी उनकी माताओं के साथ माधवी दादी उनमें लिपटी रहतीं थी। इस तरह माधवी महेश का परिवार सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था। महेश की नौकरी के चलते तथा माधवी के पारिवारिक जबाबदेही अपने सिर पर उठाए रखने के चलते इस परिवार ने कभी कोई आर्थिक तंगी महसूस नहीं की।
बेटे राम और श्याम अपने कमाई का अधिकांश भाग अपने परिवार और बच्चों पर खर्च करते थे और पिता माता को पैसे पैसे का लेखा जोखा देना मुनासिब नहीं समझते थे। महेश ने भी उनसे कभी हिसाब नहीं मांगा। माधवी भी पोते पोतियों में लगी रहती थी और अपने काम में मशगूल रहती थी। उसे पैसे के हिसाब किताब से भला क्या लेना देना। घर की जरूरत का सारा सामान महेश स्वयं समय पर लाकर घर में रख देते थे। रोज रोज का साग सब्जी आदि भी वे स्वयं ला देते थे अथवा माधवी ले आती थी। माता पिता के नौकरी और शरीर स्वस्थ रहते हुए उनके बेटों राम और श्याम ने कभी भी घर की जबाबदेही नहीं समझी। यहाँ तक की जब उनके बच्चे बड़े हुए तब उन्हें भी कभी दादी का काम में हाथ बंटाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया।
सरकारी नौकरी का उम्र पूरा हो जाने पर महेश सेवा निवृत्त हो गये। नौकरी की शर्तों के मुताबिक महेश को कोई पेंशन का लाभ नहीं मिला। इसके चलते परिवार को कुछ आर्थिक तंगी महसूस होने लगी। इधर उनके दोनों बहुओं में काम को लेकर कुछ मनमुटाव रहने लगा। उम्र हो जाने के वजह से माधवी का स्वास्थ्य भी अब पहले जैसा नहीं रहा। अब मामूली सा काम करने पर वह थक जाती थी। बहुएं अब भी यही आशा रखती थीं कि माँ खाना पकाएं और घर का सब काम करें। बहुएं राधिका और ललिता रसोई घर में जाना नहीं चाहतीं थीं। माधवी ने बहुत समझाया कि दोनों मिलजुल कर घर का काम संभाल लो क्योंकि अब मुझसे ज्यादा कुछ नहीं हो पा रहा है। लेकिन उनमें कोई सुनने वाला नहीं था। इसके चलते अब उन दोनों ने सासू माधवी का उपेक्षा करना शुरू कर दिया। अब मामला बहुओं तक ही नहीं रहा। उनके सिखाने पढ़ाने पर अब राम और श्याम दोनों भाई भी एक दूसरे से ढंग से मिलते और बात नहीं करते थे। एक घर में एक छत के नीचे रह कर भी किसी से किसी को बात करते नहीं देखा जाता था। माता पिता माधवी और महेश को अब कोई पुछने वाला नहीं था। दोनों बहुओं नें अपना अपना सामान लाकर अलग अलग खाना पकाना शूरू कर दिया और अपने अपने पति और बच्चों को खिला कर सो जाती थीं। माता पिता खाना कैसे खायेंगे इसकी चिंता अब किसी को भी नहीं रही। महेश और माधवी मुंह ताकते रहते थे कि कोई बहू उन्हें खाना दे। जब दिनों दिन इंतजार करने के बाद भी उन्हें कोई पुछने वाला नहीं रहा तब माधवी ने जैसे जैसे अपने और पति महेश के लिए कुछ बनाना शुरू किया। माधवी कुछ काम करके थक जाती फिर थोड़ा आराम करके पुनः करती, क्योंकि पेट तो मानेगा नहीं, इसे तो किसी तरह भरना पड़ेगा। इसके अलावा अपना तथा पति महेश का कपड़ा धोना, विस्तर धोना, घर साफ करना आदि भी स्वयं ही करना पड़ता।
अब माधवी को इस दुनिया के सारे रिश्ते झूठे और बोझ जैसे लगने लगे हैं। जिन बेटा, बहुओं, पोता पोतियों के लिए उसने अपने पुरे जीवन को लगा दिया, आज जब उसे उनकी जरूरत है, तो सबों ने उसे उपेक्षा कर किनारे लगा दिया। आज बुखार की अवस्था में महेश अपनी पत्नी के पास बैठा है और उसे दवा पानी देकर उसके स्वस्थ होने की कामना कर रहा है। लेकिन माधवी अपने अतीत में खोई हुई है और बुखार से कराह रही है।
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