जंग
तुम जी रहे थे गफलतों में,वक्त ने समझा दिया।
कुछ मामूली थप्पड़ों ने,
तुम्हारा होश ठिकाने ला दिया।।
जब तलक हम शांत थे,
हमको चिढ़ाया जा रहा था।
हम चुप बैठे थे फिर भी,
हम पर गोली चलाया जा रहा था।।
उब गए हम मौन रह कर,
फिर तो हम ने मौन तोड़ा।
जंग मैदानें में आकर,
तुम्हारे सारे घमंड तोड़ा।।
सह न पाए वार मेरा,
सारी हेंकड़ी निकल गयी।
जान रक्षा के लिए तुमने,
खोज ली तरकीबें नयी।।
अब भी वक्त है, सम्भल जाओ,
वरना अगले बार कुछ नहीं रह जाएगा।
आजाद देश कहलाने का तुम्हारा,
नामो निशान मिट जाएगा।।
जय प्रकाश कुंवर
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