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थाने व न्यायालय से गायब एफआईआर की प्रति, 30 वर्षों से लंबित मामले पर उठा न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल आरटीआई से हुआ बड़ा खुलासा, पीड़ित ने दोषियों पर कार्रवाई की मांग की

थाने व न्यायालय से गायब एफआईआर की प्रति, 30 वर्षों से लंबित मामले पर उठा न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल

  • आरटीआई से हुआ बड़ा खुलासा, पीड़ित ने दोषियों पर कार्रवाई की मांग की
रिपोर्ट – वरुण कुमार पाण्डेय (वजरंगी), गोपालगंज कोर्ट से

बिहार के गोपालगंज जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां न्यायालय और पुलिस थाना, दोनों से एक एफआईआर की मूल प्रति रहस्यमय ढंग से गायब हो गई है। मामला विजयीपुर थाना कांड संख्या-10/95 से जुड़ा है, जिसमें सरकार बनाम सुरेश चंद्र पाण्डेय (त्यागी) शीर्षक से मुकदमा दर्ज हुआ था। इस मामले की सुनवाई पिछले 30 वर्षों से चल रही है, लेकिन अब एफआईआर की मूल प्रति ही लापता हो जाने से न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।


इस सनसनीखेज खुलासे की जानकारी आरटीआई (सूचना का अधिकार अधिनियम) के तहत प्राप्त हुई है। आरटीआई से यह स्पष्ट हुआ कि विजयीपुर थाना और व्यवहार न्यायालय गोपालगंज से एफआईआर की मूल प्रति गायब है, जिसके चलते मुकदमा आज तक निर्णायक मोड़ नहीं ले पाया है।
गठजोड़ की साजिश और उत्पीड़न की कहानी


पीड़ित सुरेश चंद्र पाण्डेय उर्फ त्यागी, श्री देवरहा बाबा शिक्षण संस्थान, पगरा मठिया (विजयीपुर, गोपालगंज) के संस्थापक हैं। उनका संस्थान समाजसेवा और शैक्षणिक कार्यों में सक्रिय था, जिसे सरकार से 12A और 80G की मान्यता भी प्राप्त थी। पीड़ित का आरोप है कि संस्थान की ख्याति और देशी-विदेशी सहायता को देखकर सामंती मानसिकता से प्रेरित अपराधियों और भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की नजर संस्थान पर पड़ गई।


उन्होंने बताया कि अंतरप्रांतीय अपराधी गिरोह के संरक्षक कन्हैया पाठक, सरगना घनश्याम शाही उर्फ भरत शाही, एवं तत्कालीन प्रखंड प्रमुख सुभाष यादव ने जबरन ‘गुंडा टैक्स’ वसूलने का प्रयास किया। संस्थान के संचालक सुरेश चंद्र पाण्डेय के इनकार करने पर उनके खिलाफ फर्जी मुकदमों की साजिश रची गई।


पहले उन्हें ताड़ का पेड़ कटवाने के झूठे आरोप में फंसाया गया (कांड संख्या-89/90), जो न्यायालय द्वारा सबूत के अभाव में खारिज हुआ। इसके बाद एक अन्य मुकदमे (कांड संख्या-60/95) में अंतरराज्यीय अपराधी के माध्यम से झूठे आरोप लगाए गए, जो फिर से खारिज हो गया।
एफआईआर गायब: साजिश की पराकाष्ठा


इन दो मामलों में न्याय मिलने के बाद, कन्हैया पाठक ने सुरेश चंद्र पाण्डेय के विरुद्ध एक और मामला दर्ज कराया — विजयीपुर थाना कांड संख्या-10/95। इस बार आरोप था कि उन्होंने फर्जी संस्था बनाकर सरकारी राशि का गबन किया। लेकिन इस मामले में भी पाँच गवाहों में से चार ने खुद को मामले से अनभिज्ञ बताया, जिससे मामला कमजोर हो गया।


जब यह स्पष्ट होने लगा कि यह मामला भी खारिज हो सकता है, तो साजिश के तहत एफआईआर की मूल प्रति ही गायब करा दी गई। पीड़ित का कहना है कि यह कूटनीतिक चाल थी ताकि न तो अभियोजन मजबूत हो और न ही वह मानहानि का केस कर सकें।
आरटीआई में खुलासा: जिम्मेदार कौन?


आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी गोपालगंज के पत्रांक 191 दिनांक 07-03-2025 में एफआईआर रिकॉर्ड की जिम्मेदारी शौम्या शेखर, न्यायिक दंडाधिकारी गोपालगंज और उनके कार्यालय लिपिक पर डाली गई है।


एक अन्य पत्र संख्या-81 दिनांक 12-03-2025 में बताया गया कि यह वाद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के पत्र संख्या-आर-06 दिनांक 27-02-2025 के माध्यम से न्यायालय में भेजा गया। परन्तु अभिलेख के रख-रखाव, सुरक्षा और एफआईआर की मूल प्रति की अनुपस्थिति के संबंध में प्रतिवेदन आज तक लंबित है।
प्रशासनिक चुप्पी, न्याय की प्रतीक्षा


पुलिस अधीक्षक, गोपालगंज से एफआईआर की प्रति की मांग की गई, लेकिन न तो पुलिस ने न ही अभियोजन पक्ष ने कोई ठोस जवाब दिया है। इसी वजह से मामला वर्षों से लटका हुआ है और पीड़ित को न्याय नहीं मिल पा रहा है।
पीड़ित की मांग: कानूनी कार्रवाई और सत्य का अनावरण


सुरेश चंद्र पाण्डेय ने एफआईआर गायब कराने वाले दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है ताकि सच्चाई सामने आ सके और भविष्य में कोई अन्य व्यक्ति इस प्रकार के षड्यंत्र का शिकार न हो।
न्याय व्यवस्था पर सवाल


इस घटना ने न केवल एक व्यक्ति के अधिकारों का हनन किया है बल्कि न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है। एक शायर की पंक्तियां इस स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं —
"शीशे की अदालत है, पत्थर की गवाही है,
कातिल ही लुटेरा है, कातिल ही सिपाही है।
ऐ! सफेद चादर पर इतराने वाले लोगों?
मत भूलो! ये तुम्हारे गुनाहों की कमाई है।।" अब देखना यह है कि क्या बिहार की न्यायिक और पुलिस व्यवस्था इस गंभीर मुद्दे को सुलझाने में ईमानदारी दिखाती है या यह मामला इसी तरह न्याय की प्रतीक्षा में धूल फांकता रहेगा।

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