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पत्थरों से प्यार करते राही के संस्मरण

पत्थरों से प्यार करते राही के संस्मरण

लगी जो चोट बचपन में
चले हवा जब पुरवा
याद आती वो पचपन में।

उभरती टीस गहरी तब
छलक आते मेरे आँसू
सोच वह सब पचपन में।

लगी थी चोट जिस कारण
किसने चोट मारी थी
वो आती याद पचपन में।

उम्र भर के अनुभव सब, पचपन में याद आते हैं,
कसक दिल में उभरती है, क़िस्से याद आते हैं।
कभी कुछ बात दादा की, कहीं दादी की कहानी,
बिताये पल जो मस्ती में, संस्मरण याद आते हैं।

छिपे थे “राज़” दिल में जो, “राही” ने उकेरे हैं,
कुछ क़िस्से- कहानी में, संस्मरण में उकेरे हैं।
कहीं कुछ ज्ञान की बातें, संस्कारों की चर्चा है,
उस दौर के चित्र अनूठे, सब शब्दों में उकेरे हैं।

प्रीत “प्रीति” ने निभाई, संगनि राही को भायी,
शालीनता से “शालिनी” भी, सहयोगी बन आयी।
माँ माधवी का आशीर्वाद, सविता जी की प्रेरणा,
बचपन से पचपन कहानियाँ, पाठकों के मन भायी।

जी हाँ, बचपन से पचपन 101 कहानियों या यूँ कहें कि विभिन्न अनुभवों का अद्भुत पुष्प गुच्छ है। अगर हम कहें कि यह कहानियाँ हैं ही नहीं तो हो सकता है कि कुछ मित्रों व विद्वानों को हमारी बात उचित नहीं लगे परन्तु यह ही वास्तविकता है। संग्रह में अधिकांश अनुभव स्मृतियाँ, अध्यात्म के अंश, जीवन के खट्टे मीठे अनुभव यानि जीवन के सभी रंगों का समावेश किया गया है। प्रत्येक वृत्तांत लेखक का देखा भोगा तथा बचपन से पचपन तक बढ़ने की यात्रा का जीवंत दस्तावेज है। पढ़ते पढ़ते ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे हम स्वयं ही प्रत्येक घटना के साक्षी/ प्रत्यक्षदर्शी अथवा पात्र हैं।
बिहार की भूमि सदैव ही साहित्यिक दृष्टि से उर्वरा रही है। नालान्दा तथा तक्षशिला जैसे शिक्षा के महान केंद्र बिहार की भूमि पर ही फले फूले। विगत समय में सनातन व बौद्ध धर्म के ज्ञान का केन्द्र बिहार ही रहा है। श्री विद्यापति मिश्र, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री, महाकवि केदार नाथ मिश्र जैसे अनेकों अनेक साहित्यकारों ने विगत में बिहार का परचम फहराया तो वर्तमान में भी हिन्दी मैथिली अंगिका मगही बज्जिका के अनेकों साहित्यकार वैश्विक पटल पर भारत का झंडा बुलन्द कर रहे हैं। युवा साहित्यकारों में श्री अश्विनी कुमार आलोक महनार ने क्षेत्रीय भाषा बोला संस्कृति को साथ लेकर पुराने साहित्यकारों को पुनः स्थापित करने का बीड़ा उठा रखा है।
आज उसी परम्परा को आगे बढ़ाते श्री राजेन्द्र कुमार मिश्रा उर्फ़ राही राज जी कीं रचनाधर्मिता देख कर अचम्भित हैं। राही जी बरौनी ( बेगूसराय) बिहार के निवासी हैं और वर्तमान में बेंगलूरु में रहते हैं। बातचीत में सहज सरल, स्पष्ट वक्ता राही जी प्रथम मुलाक़ात में ही प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। उनकी सादगी सहजता सरलता स्पष्टवादिता उनके लेखन में भी परिलक्षित होती है।
हरामीपंथी शीर्षक संस्मरण में बहुत कुछ ऐसा है जो कालान्तर में समाचारों की सुर्खियों में रहा है। सरकारी नौकरी की चाह में कुछ युवकों द्वारा अपने पिता की हत्या कराकर अनुकंपा आधार पर नौकरी पाने की घटनाएँ समाचार पत्र पढ़कर मन को कचोटती झकझोरती रहती थी। बिहार के लोगों में शायद यह धारणा बैठ गयी कि किसी अधेड़ की मृत्यु पर परिवार पर इसी प्रकार के आक्षेप लगायें जायें। स्वयं भोगी अनुभव का विवरण इस क़िस्से में प्रत्यक्ष दिखाई देता है।
सभी रचनाओं/ कहानियों/ संस्मरणों की भाषा शैली सहजता सरलता के साथ स्थानीय बोली का पुट लिये रोचक बन पड़ी है। प्रत्येक संस्मरण संवाद करता प्रतीत होता है। प्रत्येक में कुछ न कुछ संदेश भी है, जिसको अनेक रचनाओं के अन्त में रेखांकित भी किया गया है।
पाठकों व लेखक के मध्य किसी समीक्षक को अधिक नहीं ठहरना चाहिये, इसलिए संक्षेप में कहना चाहेंगे कि बचपन से पचपन अनुभवों से ओतप्रोत एक अनूठा ग्रन्थ है जिसमें जीवन के प्रत्येक रंग व खुश्बू का समावेश है। समस्याएँ हैं तो समाधान भी हैं। सुख दुःख की अनुभूति, प्यार की पराकाष्ठा, माँ बाप की डाँट फटकार प्यार, दादी की कहानियाँ, रिश्तों का गणित, समझौता सामंजस्य, धन की लिप्सा व सन्तोष, बचपन में दस पैसे का क़िस्सा, पर्व त्योहार की बात, दोस्तों का प्यार समर्पण पराकाष्ठा सब कुछ समाहित है। एक बार पढ़ने बैठ गये तो समाप्त करने के पश्चात ही छोड़ पायेंगे।
अगर राही जी के पत्थरों से प्रेम की बात न करें तो बात अधूरी रह जायेगी जो राही जी के जीवन दृष्टिकोण की मिसाल है—-

ज़िन्दगी को जिओ तो पत्थर की तरह—

पत्थर कभी भगवान बन जाता है,
इंसान को इंसानियत पाठ पढ़ाता है।
आपके सारे कष्ट हर लेता है,
पत्थर कभी झूठ नही बोलता है।

मैं पत्थरों में बहुत कुछ देखता हूँ य,
पत्थर कभी धोखा नहीं देता है।
बदलता नहीं जलता नहीं टूटता नहीं,
पत्थर सदा सर्वशक्तिमान होता है।

प्रिय बन्धु राही राज जी को इस अद्भुत ग्रंथ के लिये अनेकों शुभकामनाएँ। माँ शारदे की कृपा बनी रहे और आपकी लेखनी माँ गंगा की तरह सदैव प्रवाहमान बनी रहे।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
53 महालक्ष्मी एनक्लेव
मुज़फ़्फ़रनगर 251001
उत्तर प्रदेश
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