Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

प्यार का कर्ज

प्यार का कर्ज

चाँद सितारे चमक रहे है।
नीले गगन में देखो तुम।
प्रीतम प्यारे को बुलाने।
महक उठा है घर आँगन।।

सहज लग रहा है हमको।
आज हमारा घर आँगन।
फूल-पत्ती और डालियाँ से
झूम उठा है घर आँगन।।

रखे कदम जब से तुमने
मेरी घर आँगन में प्रीतम।
महक उठा है मेरा जीवन
देखो अपनी आँखो से प्रीतम।।

कर्ज तुम्हारा है हम पर।
जिसको उतार न पाऊँगा।
अगले जीवन में मिलकर के।
शायद इस कर्ज उतार पाऊँगा।।

जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ