शिव स्तुति
कल्प भी शिव, काल भी शिव हैं,जीवन का उद्धार भी शिव हैं।
सृष्टि के रचयिता, विनाशक भी वे,
अंतर्यामी, सर्वज्ञ, ऐसे देव हैं वे।
काल का चक्र घूमता, वे ही हैं केंद्र,
संसार के कर्मों के, वे ही हैं नंदन।
अज्ञान के अंधेरे को, ज्ञान का दीप जलाते,
भक्तों की पीड़ा हर लेते, आनंद देते।
त्रिनेत्रधारी, डमरू बजाते,
नागों के आभूषण, श्मशान में रहते।
पार्वती के साथ, विराजमान हैं वे,
भक्तों के दुःख हर लेते, आनंद देते।
शिव शंकर, महादेव, भोलेनाथ,
तुझसे ही मिलता है, जीवन को अर्थ।
तेरी शरण में आकर, मन को शांत पाते,
तेरे चरणों में, हम सब झुक जाते।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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