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बढ़ा जान-पहचान

बढ़ा जान-पहचान

--: भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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बढा जान-पहचान
बनना चाह रही थी न
अनजान ...बिल्कुल अंजान
मैं भी किया विचार
जब ओ नहीं है तैयार
फिर तेरा सारा इजहार
बेकार है ... बेकार
और फिर धीरे-धीरे मैं
करता रहा खुद को
खुद में हीं लिन
और देखो
उपस्थित हैं ओ दिन
कर के नव श्रृंगार
जब हमसे तू रूठी थी
सारी बात झूठी थी
पर ये सच कह रहा हूं
तू बिल्कुल अनुठी थी
बिल्कुल सगुण साकार
चाहे कोई भी हमसे रुष्ट
हो साधु या फिर दुष्ट
अब क्या फर्क पड़ना है
मैं हो गया हूं स्वयं संतुष्ट
परिपुष्ट आर-पार
मर गई 'तू'
मिट गया 'आप'
नहीं बचा अब
कुछ पुण्य या पाप
जीत या हार
--------------------------------------------------------------------वलिदाद,अरवल बिहार (८०४४०२)
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