Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

जमाना हुआ है जालिम ,

जमाना हुआ है जालिम ,

चलना संभल संभल के ।
इस पल पता न क्या हो ,
भरोसा क्या उस पल के ।।
किसी को सगा न कहना ,
भले तुम ठगा सा रहना ।
ग़म रंजिश जीवन में आए ,
हॅंस हॅंसकर ही तू सहना ।।
आऍंगे तूफान भी अवश्य ,
चले जाऍंगे स्वत: टल के ।
हासिल होगा न कुछ भी ,
रह जाऍंगे वे हाथ मल के ।।
निज भाव सदा तू बहना ,
संस्कार ही तेरा है गहना ।
बाधाऍं भी मार्ग जो आऍं ,
निज को गर्क में न ढहना ।।
आज सहन जो कर गए ,
स्वामी भी तुम्हीं कल के ।
सफल संघर्ष यह तुम्हारा ,
पहुॅंच पाए हो यहाॅं चलके ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ