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डूबती कश्ती को किनारे लगा देते हैं

डूबती कश्ती को किनारे लगा देते हैं,

माँझी कश्ती के भरोसे कहाँ रहते हैं।
हौसलों की पतवार लिए आगे बढ़ते,
भंवर से भी कश्ती को बचा लेते हैं।
आँसू आँख में आयेगा तो टूटेगा जरूर,
टूटते आँसू का इतिहास बता देते हैं।
गम में भी ख़ुशियाँ तलाशना जाने,
दर्द के लम्हों में भी हम मुस्कुरा देते हैं।
देखकर उदास मुझको, जख्मों को कुरोदेगें,
लोग हँसते भीतर, बाहर हमदर्दी जता देते हैं।
नहीं देखा कोई, अपनों की मौत पर मरते,
पर बातों बातों में वफ़ा की बात सुना देते हैं।

अ कीर्ति वर्द्धन
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