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विनम्रता

विनम्रता

गुण है
मानवता का सदा,
अति विनम्रता
घातक
सदा ही रही है।
कीजिये कामना
मित्रों के सुख की सदा,
दुष्टों के
फलने फूलने की प्रार्थना
कभी होती नही है।
निर्लिप्त होना
और दोस्तों के प्रहार सहना
शास्त्र सम्मत
ऐसा विचार
होता नही है।
कामना जब भी करी
मन से करी
दोस्त सुख सम्पन्न रहे
चाहा यही।
फिर कहाँ
निर्लिप्त
हम रह पायें हैं,
कामना में
दोस्त ही तो आये हैं।
जाग जाओ
भ्रम छोडो
आगे बढो,
सत्य को
सत्य कहें
साहस गहो।
निर्लिप्त होना
और सिमटकर
घुट घुट कर जीना,
पाप है
पाप को यूँ न सहो।
पीडा है
मन में बहुत
अन्याय के प्रति,
आक्रोश प्रकट करो
और सच कहो।

अ कीर्ति वर्धन
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