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भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां

भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां

*ग्रामीण भाषा में रचित रचना*७
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
सावन के महीनवां सावन के महीनवां
सावन के महीनवां
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
गंगा जल भरके कांवरिया देखो डहरिया में
नाचै हो सावन के महीनवां।
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
बोल बम बोल बम नारा लगावे,डाक कांवरिया दौड़े हो सावन के महीनवां।
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
कोई कांवर कोई पिट्ठू सजावे रुणु झुनू रुणु झुनू बाजै हो देखो सब के कांवरिया।
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
जगह जगह पर शिविर बनल है बाबा के गीतिया बाजै हो सावन के महीनवां।
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
जगह-जगह भंडारा होवे ,फल फूल शरबत बांटै हो सावन के महीनवां।
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
के है गृहस्थी के संन्यासी ,सभे एके रंग राजै हो सावन के महीनवां।
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
एक सौ दश किलोमीटर में ,बड़का मेला लागै हो सावन के महीनवां।
भोला के बहुते भावे हो सावन के महीनवां।
-सुशील कुमार मिश्र
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