हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं
कल से ही काल बना है ,काल से ही बना है कल ।
आगे भी आता कल यह ,
पीछे भी जाता यह कल ।।
कल काल दोनों बहुमूल्य ,
दोनों की अपनी पहचान ।
एक कल संकल्प दिलाया ,
दूजा गढ़े इतिहास महान ।।
जिनके आगे पीछे है कल
कल ही बदलता आज है ।
कर्म करते संकल्पित होते ,
आज पर होता ही नाज है ।।
कलरव कर खग जगातीं ,
शीर्ष गगन हम चढ़ रहे हैं ।
तुम भी जागो वीर सपूतों ,
सुनहरे कल को बढ़ रहे हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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