क्या?

क्या?

सुनीता मिश्रा
क्या?
लिख पाती हूँ मैं कविता ?
क्या ?
प्रकट कर सकती हूँ मैं
अपने दिल के भावों को ?
क्या?
व्यक्त कर सकती हूँ मैं
अपने भीतर के उन व्यथाओं को ,
जो झेल रही हूँ मैं ?
न जाने पिछले कितने बरसों में ...
कविता क्यों व्यक्त करना ?
आखिर कविता हैं क्या ?
एक जरिया हैं,एक माध्यम है ,,,
अपने भावों को प्रकट करने का ,
कविता क्या है ?
नहीं मालूम मुझको ...
बस यह मालूम है मुझको कि
अपने दिल के भावों को
आधे-अधूरे शब्द दे देना,
शब्दों में ढालना
उन भावों को ,
जिनको महसूस करते हैं हम,
जिनका एहसास होता है हमको,
उनको रूप देना शब्दों का ।
यही तो शायद वो
एक रूप है ,एक माध्यम है,
जिससे बता सकते है हम,
क्या दुख और क्या सुख है
हमारे भीतर और बाहर
सुनीता मिश्रा
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