अपनों का दर्द- दर्द लगे, ग़ैरों की पीर फसाना है,

अपनों का दर्द- दर्द लगे, ग़ैरों की पीर फसाना है,

एक आँसू के सौ आँसू, हिन्दू के आँसू बहाना है।
धर्मनिरपेक्षता चोला पहने, कुछ भेड़िए छिपे हुए,
नक़ाब मुखों से उतर रहा तो, पीड़ित जतलाना है।

तुष्टिकरण का खेल चल रहा, आतंकी से हमदर्दी,
मस्जिद में झंडे से नफ़रत, मंदिर में नमाज़ हमदर्दी।
क़ुरान पढ़ाना संविधान, रामायण- गीता नाजायज,
एक देश क़ानून अलग, अलगाववादियों से हमदर्दी।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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