नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण

नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण

परम माध्य सृष्टि सृजन,
परिवार समाज अनूप कड़ी ।
सदा उत्सर्गी सोच व्यंजना,
पर आनंद हित सावन झड़ी ।
संवाहिका संस्कृति परंपरा,
अग्र पाद धर्म आस्था तर्पण ।
नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण ।।


मृदुल मधुर अंतर भाव,
नैसर्गिकता अंग प्रत्यंग ।
मिलनसारी विमल व्यवहार,
मुख मंडल मुस्कान उमंग ।
विनम्रता सामंजस्यता अद्भुत,
द्वि कुल हित निज खुशियां अर्पण ।
नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण ।।


अज्ञानता वश जन मानस भ्रमित,
दृष्टि पात मात्र सुडौल तन ।
वासना मय आचार विचार,
कुंठित मानसिकता अथाह रमन ।
पुरुष प्रधान समाज अहंकारी,
देख अबला शील समर्पण ।
नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण ।।


महिला शक्ति प्रतिभा अनुपम,
हर क्षेत्र अग्रणी भूमिका ।
शिक्षा विज्ञान खेलकूद गृह,
नित वंदित कीर्तिमानी तूलिका ।
स्नेहगार दया उद्गम स्थल,
सद्गुण पुंज सिंधु मर्षण।
नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण ।।


महेन्द्र कुमार(स्वरचित मौलिक रचना)
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