सेकुलरिज्म बनाम भारतीयता का द्वंद्व

सेकुलरिज्म बनाम भारतीयता का द्वंद्व

डॉ राकेश कुमार आर्य
आम चुनाव 2024 का चुनाव प्रचार इस समय अपने पीक पर है। राजनीति में और विशेष रूप से लोकतंत्र में सत्ता प्राप्त करना प्रत्येक राजनीतिक दल का अधिकार है। पर इसके लिए उसे कुछ लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन भी करना पड़ता है। इस समय राजनीतिक दलों में एक दूसरे को नीचा दिखाने और नीचा गिराने की होड़ मची हुई है। वास्तव में देखा जाए तो इस समय चुनाव सेक्युलरिस्ट 'इंडिया' गठबंधन और राष्ट्रवादी दलों के बीच हो रहा है। 'इंडिया' गठबंधन के नाम पर एक ओर वे दल हैं जो परंपरागत रूप से संप्रदायवादी शक्तियों का तुष्टिकरण करते रहे हैं। जिनके लिए हिंदू विरोध करना ही लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करना है। यही कारण है कि 'इंडिया' गठबंधन या उस जैसी विचारधारा में विश्वास रखने वाले राजनीतिक दल इस बात की प्रतियोगिता करते रहते हैं कि उनमें से कौन सा अधिक हिंदू विरोधी हो सकता है? भारतीय राष्ट्र के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले सनातन समाज की आस्था से खिलवाड़ करना इन राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति में सम्मिलित हो गया है। जबकि भारतीय राष्ट्र की जड़ों में मट्ठा डालने वाले संप्रदायों को ये दल पाल- पोसकर बड़ा करने ,उनका तुष्टिकरण करने और उन्हें दूध पिलाने का काम करते रहते हैं। देश के मतदाताओं को इस समय यह सोचने की आवश्यकता है कि देश को सेकुलर नॉन सेकुलर दो भागों में विभाजित करने वाली विचारधारा देश के लिए कितनी घातक हो सकती है ?
सेक्युलरिस्ट विचारधारा से अलग एक दूसरी विचारधारा है। इस विचारधारा के राजनीतिक दल भारत और भारतीयता के प्रति अपने आप को समर्पित करके दिखाते हैं। भारतीय आस्था, भारतीय धर्म और भारतीय परंपराओं में उनकी अटूट श्रद्धा और भक्ति दिखाई देती है। यद्यपि कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि कई प्रकार के पाखंडों को भी ये दल अपनाने या बनाए रखने पर बल देते दिखाई देते हैं। माना जा सकता है कि ऐसे पाखंड या अंधविश्वास का विरोध करना इन राष्ट्रवादी राजनीतिक दलों के बस की बात नहीं है या फिर उनके भीतर भी ऐसा कोई विद्वान नहीं है जो यह बता सके कि अमुक परंपरा मात्र ढोंग या पाखंड है और अमुक परंपरा का कोई ना कोई वैज्ञानिक आधार है?
ये राष्ट्रवादी राजनीतिक दल देश के भले के अनेक कार्य करते दिखाई देते हैं। जिससे देश का बहुसंख्यक सनातन समाज इनके प्रति आकर्षित होता दिखाई देता है।
इस सब के बीच देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के बारे में कहा है कि "शहजादे अर्थात राहुल गांधी ने राजा महाराजाओं का सदा अपमान किया है , जबकि नवाबों को गले लगाया है।"
यदि देश के इतिहास को खंगाला जाए तो पता चलता है कि देश के प्रधानमंत्री कांग्रेस और उसके नेता के लिए ठीक ही कह रहे हैं। वास्तव में नवाबों को अर्थात एक विशेष विचारधारा के लोगों को गले लगाना और राजा महाराजाओं अर्थात देश के सनातन की परंपराओं की उपेक्षा या तिरस्कार करना कांग्रेस की मौलिक विचारधारा और संस्कृति में सम्मिलित रहा है। विदेशी सुल्तानों, नवाबों, बादशाहों के इतिहास को इस देश का इतिहास मान लेना उनके अत्याचारों और निर्दयता पर न्याय की मोहर लगाना है । जिस काम को वे लोग अपने जीते जी नहीं कर सके, उसे कांग्रेस के शासन में पूर्ण किया गया अर्थात ये नवाब, बादशाह और सुल्तान जीते जी अपने आप को इस देश का सर्वमान्य और न्यायप्रिय शासक घोषित करने का प्रयास करते रहे, पर देश के जनमानस ने उन्हें इस प्रकार की मान्यता प्रदान नहीं की। पर कांग्रेस ने इतिहास लेखन के माध्यम से ऐसा कर दिया। देश के जनमानस ने इन शासकों के अवर्णनीय और अमानवीय अत्याचारों को देखा और झेला था, जिसे कांग्रेस ने उपेक्षित कर दिया।
अब हम यहां पर कांग्रेस या इंडिया गठबंधन के नेताओं के कुछ ऐसे बयानों को समीक्षित करने का प्रयास करेंगे जिनके कारण देश में इस विमर्श को बनाने में सहायता मिली कि ये लोग हिंदू विरोधी मानसिकता के हैं। अपनी राष्ट्र विरोधी अथवा हिंदू विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1952 में कहा था कि "अगर हम गायों की रक्षा करने लगे तो लोग कहेंगे कि हम देश को 15वीं शताब्दी में ले जा रहे हैं।"
देश के पहले प्रधानमंत्री के इस प्रकार के बयान से पता चलता है कि उनकी सनातन संस्कृति में कोई आस्था नहीं थी। वह पश्चिम की अपसंस्कृति को ही वास्तविक मानवीय संस्कृति मानते थे। उनके इस बयान से पता चलता है कि वह भारत और भारतीयता के विरोधी थे। नेहरू जी की इसी सोच को अपनाकर इंदिरा गांधी ने देश के गौ भक्तों पर गोलियां चलवाई थीं और अनेक संतों की हत्या करवा दी थी। इस सोच को कांग्रेस के वर्तमान नेता अथवा राहुल गांधी की कांग्रेस भी मानकर और अपना कर चल रही है। कांग्रेस के मंच पर जिन-जिन नेताओं ने कुछ समय रहकर राजनीति की, उनका भी इस पार्टी ने ' ब्रेन वाश' करने का काम किया। फलस्वरूप सत्ता स्वार्थी नेता जब कभी कांग्रेस को छोड़कर अलग हुए तो उन्होंने भी कांग्रेस से मिले मौलिक संस्कार के चलते हिंदू विरोध की राजनीति और सोच को निरंतर बनाए रखा। ऐसे नेताओं में से शरद पवार का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जिन्होंने कुछ समय पहले ( दिसंबर 2013 में ) कहा था कि 'गायों के मारने से देश को कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि गायों को बचाने से बड़ी समस्या हो जाएगी।' उल्लेखनीय है कि शरद पवार देश के कृषि मंत्री भी रह चुके हैं। उनके इस बयान से पता चलता है कि वह कृषि मंत्री रहने योग्य नहीं थे। क्योंकि उनके भीतर ऐसा वैज्ञानिक चिंतन नहीं था जिससे गाय की उपयोगिता को वे समझ पाते। राहुल गांधी को भी जो संस्कार नेहरू, इंदिरा गांधी और अपने पिता राजीव गांधी से मिले उनके चलते उन्होंने भी दिसंबर 2013 में ही कहा था कि देश की सबसे बड़ी समस्या कट्टर हिंदुओं की बढ़ती हुई संख्या है। तभी समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान ने कहा था कि "भारत माता देवी नहीं एक पिशाचिनी है।"

(लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
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