"लफ़्ज़ों के जादूगर, जज़्बातों से बेखबर"
लफ़्ज़ों में महारत है,जज़्बात समझने में ज़रा कच्चे हैं,
कभी रेशम की तरह नाज़ुक,
कभी तलवार की तरह तीखे हैं।
बुनते हैं कहानियां दिल को छू लेने वाली,
जज़्बातों की गहराई ना समझ पाते हैं,
दर्द के सागर में डूबे हुए,
खुशी की बूंदों को ढूंढ नहीं पाते हैं।
शब्दों की चादर ओढ़कर,
दिल की आवाज़ को अनदेखा करते हैं,
आँखों में छिपी कहानी को,
कभी ना समझ पाते हैं।
शायद लफ़्ज़ों का खेल ही उनका जहान है,
जज़्बातों की जगह बस शब्दों की शान है,
शायद दिल की भाषा कभी ना समझ पाएंगे,
बस लफ़्ज़ों के जादू में ही खो जाएंगे।
लफ़्ज़ों में महारत है,
जज़्बात समझने में ज़रा कच्चे हैं,
कभी रेशम की तरह नाज़ुक,
कभी तलवार की तरह तीखे हैं।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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