यूँ मुहब्बत दिलों में जगाया न कर

यूँ मुहब्बत दिलों में जगाया न कर

प्रदक्षिणा मिश्रा
यूँ मुहब्बत दिलों में जगाया न कर,
साथ मुमकिन नहीं तो मिलाया न कर।( मतला)
खुद गमों को किसी से जताया न कर,
राज दिल का सभी को बताया न कर। (हुस्ने मतला)
प्रेम के ख्वाब आंखों सजा जब लिए,
ए-खुदा फिर रहम कर मिटाया न कर।
आज मिलना हुआ कल बिछड़ना लिखा,
दर्द की गाज को यूँ गिराया न कर।
दोस्त कहते स्वयं को यहाँ पर सभी,
दोस्त बनकर किसी को रुलाया न कर।
रेह(नमक) लेकर खड़े है सभी हाथ में,
जख्म यूँ ही सभी को दिखाया न कर।
आंसुओं को कलम से लिखे हम बहुत,
'प्रीत' दिल में घुटन को दबाया न कर।
प्रदक्षिणा मिश्रा
लखनऊ
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