एक पल प्रेम का


एक पल प्रेम का

मानव में तुम जन्म लिए हो ,
ऊर्ध्व संस्कृति पाल रखे हो ।
एक नजर तू देख ले निज पे ,
कैसी बना तुम हाल रखे हो ।।
अहंकार बसा है मन में तेरे ,
ईर्ष्या शोषण के ताल रखे हो ।
कर्म तेरे तो चतुर सियार का ,
ऊपर से ये शेर खाल रखे हो ।।
गरीबों के ही सब हड़पकर ,
घर में अपने ही माल रखे हो ।
वाणी तो तेरी कोयल जैसी ,
कौए जैसा तुम चाल रखे हो ।।
जीवन को जीवित बनाओ ,
जीवन न बना मृत फ्रेम सा ।
मन में निज प्रेम तो बसाओ ,
करके देख एक पल प्रेम का ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
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