बे-रंग

बे-रंग

विनय मिश्र "मामूली वुद्धि"
आंसूओं के अमीट रंगो के बीच ..
कुछ खोजती रही आँखे भोली ..
पितृ आशीष के वीना ..
बेरंग रही मेरी होली .. ।
रंग अबीर युक्त चरण ..
ठहाकों मे आशीष के दर्शन ..
रंग भरे माँ के हाथ ..
हंसी के बीच पापा जी के धमकी के दर्शन . ।
ठहरीए , रुकीये खाली पानी मत फेंकीये ..
जब उसमे घुला रंग नही है ..
रंगो से खेलीये ..
होली धमा चौकडी वाला जंग नही है .।
दादाजी थे शौभाग्य साथ मे नाना जी थे सम्पूर्ण परिवार पापाजी संग बैठे लगते रंगोली .
कभी बडी़ भव्यता से सजती थी ..
मेरे घर आंगन मे भी होली .. ।
आसुओं के अमीट रंगो के बीच ..
इस वर्ष कुछ खोजती रही आँखे भोली . ।।
भूल गया मै फगुवा ..
भूल गया मैं चैता ..
व्यथा देख मेरी ..
रो गये उत्सव के रचैता . ।
कहाँनी लम्बी है ..
व्यथा बड़ी है ..
उल्लास में है दुनीयां ..
पर मेरे लिए दर्द की घडी है .. ।
शून्य में खोया मैं .........
सून नही पाया कोयल की मीठ्ठी बोली ..
आंसूओं के अमीट रंगो के बीच .
कुछ खोजती रही आँखे भोली .. ।
इस वर्ष पिचकारी रंगो की ..
छोड़ रही थी हृदय पर गोली ..
पितृ आशीष के वीना ..
बे रंग रही मेरी होली .. ।
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