संसद पर हमला

संसद पर हमला

 मनोज मिश्र
भारत की संसद के लोकसभा में धुएं वाले बम के साथ हंगामा करते पकड़े गए सभी ५ आरोपियों की पृष्ठभूमि अब ज्ञात हो गई है। इनमे से मनोरंजन डी एक कंप्यूटर इंजीनियर हैं। सागर शर्मा जो मुख्य रूप से लोकसभा के अंदर पकड़ा गया, वह ई रिक्शा चलाता है, नीलम वर्मा आजाद एम फिल है और टीचर के लिए क्वालीफाई भी किए हुए हैं तथा दिल्ली में सभी आंदोलनों का हिस्सा रही है,अमोल डी शिंदे श्रमिक काम करते हैं। कहने का अर्थ यह है की सभी अपने अपने परिवार का भरण पोषण अपने अपने ढंग से कर रहे हैं। अतः यह कहना की कि ये बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलित थे सिर्फ एक नैरेटिव सेट करना है। भारत में बेरोजगारी की दर वर्तमान में घट कर ६.८% रह गई है। प्रश्न यह है कि ऐसा करके ये हासिल क्या करना चाहते थे? एक ही उत्तर है - सस्ती लोकप्रियता और उसके माध्यम से त्वरित गति से राजनीतिक सीढ़ी चढ़ना। इनके सामने कन्हैया कुमार और उमर खालिद का उदाहरण था जिन्होंने देश का विरोध करके अपनी राजनीतिक जमीन पाई थी। उनकी तरह ये भी भगत सिंह का ही नाम लेते पाए गए। बाकी घरवालों के लिए तो ये मासूम बच्चे हैं जो शैतानी कर बैठे। पर ये घरवाले ये नहीं बताते कि उनके ये मासूम बच्चे इस हमले की योजना डेढ़ साल से बना रहे थे। मनोरंजन के घर से तो वाम पंथी साहित्य की भी बरामदगी हुई है। इन सबका जो नेता है ललित कुमार झा, खुद एक वाम पंथी है, जिसकी आय का कोई ज्ञात स्रोत नहीं है। ललित ने इस घटना का वीडियो उत्तर बंगाल के एक एनजीओ को भेजा था। आरोप तो यह भी है एनजीओ के करता धर्ता को उसने वीडियो कॉल भी किया था। हालांकि एनजीओ के प्रमुख नीलाद्री ने कॉल की बात से इंकार किया है पर वीडियो मिलने बात स्वीकार की है। फिलहाल दिल्ली पुलिस इसकी गहन जांच कर रही है। इन आरोपियों को पहले तो बीजेपी का साबित करने की कोशिश हुई, पर जैसे ही सोशल मीडिया पर नीलम के किसान आंदोलन और पहलवानों के आंदोलन के वीडियो वायरल हुए इनको भटके नौजवान बताना शुरू हो गया। सागरिका घोष से लेकर प्रशांत भूषण तक, शिवानंद तिवारी से लेकर योगेंद्र यादव तक सभी इनके बचाव में आ गए। राजदीप सरदेसाई क्यों पीछे रहते और सुप्रिया श्रीनाते तो खैर कांग्रेस की मीडिया कक्ष की प्रभारी ही हैं। उनका तो सरकार पर आक्षेप समझ में भी आता है। पर दिक्कत यह है की सभी आरोपी बीजेपी के धुर विरोधी और कांग्रेस के समर्थक निकल गए। ये सभी रवीश कुमार जी के फैन है और कांग्रेस के नेताओं के समर्थक। सरकार विरोधी हर सोशल मीडिया पोस्ट को इनका समर्थन था।
यहां सरकार भी अपनी जिम्मेवारी से बच नहीं सकती उसको कटघरे में खड़ा करना ही चाहिए। इतनी बड़ी घटना में हुई सुरक्षा चूक क्या सिर्फ प्रहरियों की चूक है। आखिर दिल्ली की लोकल इंटेलिजेंस यूनिट क्या कर रही थी। इन धूर्तों को जो भी संरक्षण दे रहा है या दे रहा था सभी की जांच होनी चाहिए। गृह मंत्री भी अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं सकते।
भारत की संसदीय राजनीति के पटल पर लगा यह कलंक का टीका अब धुल नहीं सकता। राजनीति में किस प्रकार अवसर तलाशे जाते हैं उसका भी यह प्रत्यक्ष उदाहरण है। विपक्षी राजनीति का यह सबसे बड़ा पतन है वहीं सरकार के निकम्मी होने का सबसे बड़ा सबूत भी। सांसद में घटी यह घटना इजरायल में हुई हमास के हमले की भी याद दिलाती है। वहां भी सुरक्षा कर्मी असावधान हो गए थे और यहां भी। फलतः वही जहां जन धन का नुकसान हुआ तो यहां भारत के सम्मान की नीलामी हुई। आशा करें की ये दुर्दिन पुनः हमें नहीं देखने पड़ें।
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