सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं

सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं

सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं सब अख़बारों की
आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए


ख़ून से लथपथ हैं ज़मीन, आसमान, दीवारें
ख़ून से भीगा हुआ है यहां हर इंसानी चेहरा


ख़ून से भरी है हवा, ख़ून से भरी है ज़मीन
दहशत से भरी है हर इंसान की ज़िंदगी


आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए
आज के दिन कोई अख़बार न पढ़ा जाए


राजनीति और सत्ता से प्रभावित हैं सुर्ख़ियाँ
धन्ना सेठों की कठपुतली है 'कमल' ये कलम


ख़ून से लिखी गई हैं ये ज़िंदगी की कहानी
ख़ून से लिखी गई है इंसानियत की कहानी


आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए
आज के दिन कोई अख़बार न पढ़ा जाए


ख़बरें ऐसी हैं कि उन्हें पढ़ते-पढ़ते
दिल घबराए, मन उदास हो जाए


कहाँ गया वो दौर जब अख़बारों में
ख़बरें होती थीं सकारात्मकता भरी


अब तो हर दिन भरी होती हैं ख़बरें
इसमें मौत, सनसनी और हिंसा की


इस दौर में अख़बारों का पढ़ना सबब
बना हुआ है निराशा और हताशा का


इस मायूसी और ज़ुल्म से बचने के लिए
आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए


स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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