संभावनाएँ ठिठुर कर जो सो रहीं

संभावनाएँ ठिठुर कर जो सो रहीं|

-- डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
संभावनाएँ ठिठुर कर जो सो रहीं,उनको जगाओ।
आग की लपटें जो ठंढी हो रहीं, उनको जगाओ।
हर नफस है आह की ही तर्जुमानी बेकसर,
हसरतें चुपचाप सो कर रो रहीं, उनको जगाओ।
रात कब की ढल चुकी, हम सो रहे उन्माद में ,
तमन्नाएँ ज़िन्दगी की खो रहीं, उनको जगाओ।
परछाइयाँ जिनकी नजर में घूमतीं हर वक्त
रात को जो आँसुओं से धो रहीं, उनको जगाओ।
ताइर के जाते ही नशेमन खूबसूरत जल गया, राख में चिनगारियाँ बच जो रहीं, उनको जगाओ।
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