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नीतिशाष्टक

नीतिशाष्टक

ज्योतीन्द्र मिश्र
बिन मारे बैरी मरा , हो गया बंटाधार
घर के रहे ना घाट के,छूट गया पतवार (१)
छूट गया पतवार दिया मांझी को झटका
अपने सिर पर ही कुम्हार ने फोड़ा मटका (२)
नर नारी को समझाया ऐसा केलि- कलाप
शर्मसार भागी महिला करती हुई विलाप(३)
सूर संत के शाप से , हुई सरस्वती मंद
लगे सभा में छीलने ,सुथनी शकर कंद(४)
खोटा मानुख मन का,हँस हँस कर बतियावे
चौबे चले जो छब्बे बनने दुबे बनकर आवे (५)
गांजे की तासीर पर जनता का हल्ला बोल
परत दर परत खुल गई गठबंधन की पोल (६)
समय दिला देता नेता को अनचाहा सन्यास
आधी आबादी रूठ गई,डालेगी कभी न घास(७)
कहे जोतिन्दर मिसिर सुनो ,अंडा हो गया गण्डाबैठे ठाले भगवा को , 
मिल गया बड़ा हथकंडा (८)
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