षष्ठी देवी एक पृथक् देवी के रूप में मान्य हैं।

षष्ठी देवी एक पृथक् देवी के रूप में मान्य हैं।

-- डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
आज 'प्रभात खबर'(दि•१९/11/23, पृ॰14)में आचार्य किशोर कुणाल से बातचीत के आधार पर प्रकाशित संवाद पर यों ही दृष्टिपात हो गया। स्वभावतः अखबार से मेरा कोई लगाव नहीं है।
मुझे बड़ी हैरानी हुई यह देखकर कि कुणाल जी ने षष्ठीदेवी की पहचान identification)माता पार्वती से कर दी है। यह मन्तव्य नितरां भ्रान्त है। षष्ठी देवी एक पृथक् देवी के रूप में मान्य हैं। इनका विस्तृत विवरण देवीभागवत पुराण (स्कन्ध-9,अध्याय-46)में द्रष्टव्य है। इन्हें 'देवसेना 'भी कहा जाता है।देवसेनाध्यक्ष कार्त्तिकेय (स्कन्द)की पत्नी हैं 'षष्ठीदेवी '।मूलप्रकृति के षष्ठ (छठे)अंश से प्रकट होने के कारण इन्हें षष्ठी देवी कहा जाता है। यह देवी 'बालकों की अधिष्ठात्री' एवं 'बालदा 'कही गई हैं। यह ब्रह्मा की मानसी कन्या हैं।
संतान के जन्म के छठे दिन इन्हीं की पूजा का विधान है। छठ व्रत के संदर्भ में 'छठी मैया 'के रूप में यही षष्ठी देवी प्रकीर्तित हैं।
सूर्य-पूजा से इस व्रत के ऐकात्म्य का रहस्य यह है कि सूर्य (सविता)भी सृष्टि के एक प्रधान देवता हैं। प्राणिप्रसव-वाचक 'षूङ्' धातु से सूर्य या सवितृ (सविता)की व्युत्पत्ति प्रतिपादित है। मैत्र्याण्युपनिषद् में कण्ठोक्त है--"शश्वत्सूयमानात् सूर्य:सवनात् सविता।"सूर्य-सिद्धान्त "में भी स्पष्टतः "प्रसूत्या सूर्य उच्यते "कहा है। भगवत्पाद शंकराचार्य-रचित 'प्रपंचसारतन्त्र '(20/15,16)में भी यह तथ्य विशदित है। सूर्य देव का सबसे परिनिष्ठित मन्त्र है--"ॐघृणि:सूर्य आदित्यः "।सूर्य-तत्त्व का विशद विवेचन मैंने
अपने ग्रन्थ 'भारतीय संस्कृति और तान्त्रिक चेतना '(राजेश पुस्तक केन्द्र, दिल्ली से प्रकाशित)में किया है। कृपया मेरे इस सारभूत विवेचन को यथावत् प्रसारित किया जाए, ताकि तथोक्त भ्रान्ति का सम्यक् निराकरण हो।
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