नारी
तलाशती खुद का वुजूद, खुद को ही तलाश कर,सृजन कर रही सृष्टि का, खुद को ही तराश कर।
माँ बहन बेटी है नारी, प्रेयसी भी वह स्वयं ही बनी,
शक्ति का महापुंज बनी, खुद को ही प्रकाश कर।
तोड़ती वर्जनाओं को वह, स्वयं को सँभालती,
गली सड़ी बेड़ियों को तोड, नई राह तलाशती।
मर्यादाओं का पालन, संस्कार संस्कृति की पोषक,
धरा गगन पाताल तक, अस्तित्व को निखारती।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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