एक साथ ही एक पेड़ पर ,
फूल और कांटे उगते हैं ।एक मन को खुशबू देते,
एक बदन में चुभते हैं ।
संगत है दोनों का हरदम ,
गुण बदल नहीं पाता है ।
लाख कोशिशें जारी रहे ,
स्वभाव बदल नहीं जाता है ।
दुध पिलाकर के भुजंग को ,
विष अमृत बना न पाओगे ।
खल को गंगाजल से धोकर ,
स्वच्छ न करने पाओगे ।
पैदाइशी कोई नर कसाई ,
अहिंसा समझ न पाएगा ।
रक्तपात करने में माहिर ,
कभी बदल नहीं पाएगा ।
जो आतंकी बने हुए हैं ,
जगह जगह पर तने हुए हैं ।
रोज ही मरते जायेंगे ,
फिर नये नये उग आयेंगे ।
तुम पेड़ काट सकते नहीं ,
तुम कांटे को अलग कर सकते नहीं ।
तुम फूल को छेड़ नहीं पाओगे ,
तो कैसे इन्हें अलग हटाओगे ।
है प्रकृति का विधान यही ,
फूल संग कांटे रहेंगे सही । जय प्रकाश कुंअर
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