बाल हठ
हठ तो होती हैं अनेक मगर ,बाल हठ जैसा तो कुछ नहीं ।
ईश भी नतमस्तक हो जाते ,
बाल हठ होता है तुच्छ नहीं ।।
बाल होते बिल्कुल अज्ञानी ,
बाल हथियार होता है क्रंदन ।
मात पिता भी तब हार मानते ,
ईश्वर भी करते उसका वंदन ।।
बाल चाहे राजा की दाढ़ी नोचे ,
राजा भी मान सकते नहीं बुरा ।
बाल हठ सदा ही क्षम्य होता ,
बाल हठ होता सदा ही पूरा ।।
बाल मन बहुत सच्चा है होता ,
बाल क्षमता नहीं तब बोलने की ।
बाल समक्ष हर कोई हैं झुकते ,
बाल क्षमता ही नहीं झुकने की ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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