रावण का पूतला
संजय कुमार मिश्र अणु
आजकल
खुब चलन में है,
हर चौक चौराहे पर
गांव शहर में
दशहरा में
जलाने को
रावण का पुतला
मानों एक वही
रहा धरती का
एकमात्र अधम पापी
बाकी सब दूध का धूला
मैंने माना
उसने छल से सीता को
चुराई थी
पर इस कुकृत्य में भी
उसकी दुरदर्शीता समाई थी
बिल्कुल अच्छा भला
वो पाना चाहता था
अपने ज्ञान के भार से मुक्ति
और निकाला उसने
बैर की युक्ति
सपरिवार न कि अकेला
यदि राम है स्वयं नारायण
तो निश्चित है कुल का तरण-तारण
यदि होगा मात्र मानव
तो स्वीकार नहीं करेगा ये रण
जो मौत है खुला
बस यही सोचकर क्रम
किया राम के स्वत्व पर आक्रमण
एक अपराजित योद्धा का
था कुछ ऐसा ही अघोषित आमंत्रण
अंतस में घुला
एक महान शैव
और त्रिकालज्ञ पंडित
पर कभी होने नहीं दिया
अपनी मर्यादा को खंडित
समझकर जीवन एक बुलबुला
कोई अपना नहीं पाया
वो आदर्श राम का
और कर रहा है रावण दहन
प्रतिरूप इंतकाम का
अभिमान से फूला फूला
------------------------------------------------------------------वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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