'शब्दाक्षर' औरंगाबाद, बिहार का काव्य-महोत्सव सोल्लास सम्पन्न

'शब्दाक्षर' औरंगाबाद, बिहार का काव्य-महोत्सव सोल्लास सम्पन्न

  • यहां मोहब्बत सिसक रही है मगर उसे कुछ खबर नहीं है.....सावित्री सुमन
अखिल भारतीय स्तर की साहित्यिक संस्था 'शब्दाक्षर' की जिला इकाई औरंगाबाद (बिहार) द्वारा रोटरी क्लब के सभाभवन में एक विराट कवि- सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष धनंजय जयपुरी तथा संचालन कवि द्वय विनय मामूली बुद्धि एवं नागेंद्र कुमार केसरी ने किया। कार्यक्रम का उद्घाटन संस्था के प्रदेश अध्यक्ष मनोज मिश्र 'पद्मनाभ', जहानाबाद जिलाध्यक्ष सावित्री 'सुमन', औरंगाबाद जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो सिद्धेश्वरच प्रसाद सिंह, उपाध्यक्ष डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र, प्रो संजीव रंजन एवं नैप्स के जिलाध्यक्ष अंबेडकर पाल ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। आगत अतिथियों को पुष्प गुच्छ, अंग वस्त्र, साहित्यिक पुस्तकें एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। उक्त अवसर पर 'शब्दाक्षर' के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह का शुभकामना संदेश पढ़ कर सुनाया गया, जिसमें श्री सिंह ने समिति के पदाधिकारियों की प्रशंसा करते हुए,औरंगाबाद में हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु तन्मयता से कार्य करने की प्रेरणा दी। इसी क्रम में राष्ट्रीय प्रवक्ता 'शब्दाक्षर' डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी के सारगर्भित संदेश को भी पढ़ा गया, जिसमें डॉ. प्रियदर्शनी ने 'शब्दाक्षर' के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला था।
कवि सम्मेलन की विधिवत् शुरुआत कुमार सानू द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। काव्यपाठ के दौरान उन्होंने कहा कि-" यूं तो मैं आबाद रहता हूं, मैं यहां जिंदाबाद रहता हूं, रहता हूं शहर-ए-दिल में मैं, मैं तो औरंगाबाद रहता हूं।" हिमांशु चक्रपाणि की ग़ज़ल की ये पंक्तियों- "जिसे तू आजमाना चाहता है,उसे सारा जमाना चाहता है, तुझे पाने की जिद में खड़ा हूं, जिसे पाना जमाना चाहता है" पर तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा सभाभवन गूंजायमान हो गया। ईश्वर की आराधना करते हुए कवि अजय वैद्य ने कहा कि -"हे ईश्वर आप हो संपूर्ण, अमर अविनाशी माया मोह से दूर।" आमस से पधारे कवि प्रवेश कुमार की बेटी पर आधारित भाव-प्रवण कविता-"लो खोलता हूं आज दिल की गांठ लाडली, बोलता हूं आज दिल की बात लाडली, क्यों याद तेरी आए नहीं" ने शुष्क आंखों को भी निर्झरिणी बन अनवरत अश्रुधार बहाने पर विवश कर दिया। शिक्षक जयप्रकाश कुमार की व्यंग्य रचना- "इस शहर का एक शरीर है जो कुछ साल पुराना है, पर एक आत्मा है जो सदियों पुरानी है" काफी सराही गई। अनुज बेचैन ने एक शब्दचित्र- "प्रेमचंद तुम्हारी याद आती है आज भी" के माध्यम से प्रेमचंद की विविध कहानियों के पात्रों एवं तथ्यों को जीवंत बनाकर उपस्थापित कर दिया।
व्यंग्य के बादशाह कविवर विनय मामूली बुद्धि ने एक व्यंग्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि-" चीख नहीं चित्कार सुनाई पड़ी नजदीक से जबकि था बहुत दूर , सिसक सिकुड़ रहा हस्तिनापुर।" सावित्री सुमन की ग़ज़ल की पंक्तियों -"यहां मोहब्बत सिसक रही है, मगर उसे कुछ खबर नहीं है, जिस राह से तुम गुजर रहे हो, उस राह में तेरा घर नहीं है" ने उपस्थित काव्यप्रेमियों के मन-मानस में प्रेम रस का संचार कर दिया।
उक्त कवि-सम्मेलन में उपर्युक्त लोगों के अलावा मुख्य रूप से जिन कवियों ने अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दीं उनमें रोहित कुमार, जनार्दन मिश्र जलज, अनिल अनिल, लवकुश प्रसाद सिंह, प्रभात बांधुल्य ,सुरेश विद्यार्थी, शिवजी, संतोष सिंह इत्यादि मुख्य थे।
शिक्षक नेता अशोक पांडेय, पत्रकार राज पाठक, सिंहेश सिंह, बैजनाथ सिंह, अजय कुमार, सुरेश ठाकुर, अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह सहित सैकड़ो बुद्धिजीवियों की गरिमामई उपस्थिति ने कवि सम्मेलन को भव्यता प्रदान की।मुख्य अतिथि सहित मंचस्थ सभी विद्वानों ने कार्यक्रम की भूरी-भूरी प्रशंसा की एवं समय-समय पर काव्य -गोष्ठियां आयोजित कराते रहने की वकालत की। धनंजय जयपुरी द्वारा अध्यक्षीय उद्बोधन तथा आभार ज्ञापन के साथ कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की गई।
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