संसद उद्घाटन और राजनीति

संसद उद्घाटन और राजनीति

जितेन्द्र नाथ मिश्र
नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा किए जाने पर राजनीति अपनी परकाष्ठा पर पहुंच गई। कुछ दलों ने यह यह कहकर उद्घाटन समारोह का विरोध किया कि यह दलित आदिवासी राष्ट्रपति का अपमान है। किसी ने हिंदू रीति से होने वाले पूजा का विरोध के कारण उद्घाटन समारोह का वहिष्कार किया। किसी ने उत्तर भारत के ब्राह्मणो को पूजा में आमंत्रित नहीं किए जाने आपत्ति दर्ज किया और कहा कि उत्तर भारतीय का अपमान है । किसी दल ने नये संसद भवन को ताबूत कहा। चलिए आप सभी दलों के विचार से मैं कूछ पल के सहमत हो जाता हूं। चलिए मैं प्रसन्न हूं कि आप लोगों ने प्रधानमंत्री के विरुद्ध एकजूटता दिखाई।
पर कुछ ज्वलंत प्रश्न है़ जिनका जवाब भारतीय जनता आपसे मांग रही है।
यदि नया संसद ताबूत है तो आपके सांसद उस ताबूत में जाने के लिए लोकसभा चूना में भाग नहीं लेंगे?
यदि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति को नहीं बुलाकर उनका अपमान किया तो क्या बता सकते हैं कि तीनों सेनाओं का प्रमुख राष्ट्रपति होते हैं पर १९७१में भारत पाक युद्ध में भारत की जीत और पाकिस्तान का दो टूकडा करने का श्रेय तात्कालीन प्रधानमंत्री ने क्यों लिया।
क्या आप बता सकते हैं कि राज्यों के मुख्यमंत्री/केन्द्र शासित राज्य के मुख्यमंत्री अपने राज्य में बनने वाले सरकारी इमारतों/कल्याकारी योजनाओं का उद्घाटन स्वयं क्यो करते हैं जबकि राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व राज्यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर होते हैं ‌।
उत्तर और दक्षिण भारत शब्द का प्रयोग कर क्या वो धार्मिक और भाषाई आधार पर भारत को दो भागों में बांटना नहीं चाहते ‌।
प्रधानमंत्री का विरोध करने के लिए जिस विपक्षी की बात आपलओगों ने किया था उसमें से आधे दल प्रधानमंत्री के साथ खड़े थे। कहां गयी आपकी चटृटानी एकता
आपके दल का ही एक जनप्रतिनिधि जो राज्यसभा का उपसभापति है,ने कैसे आपका ही विरोध करते हूं उद्घाटन समारोह में शामिल होकर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का संदेश पढ़ा।
चलिए वह दिन भी आज आ गया जब प्रधानमंत्रीने पांच दिनों का विशेष सत्र नये संसद भवन में आहूत करने का फैसला कर सभी विरोधी दलों को एक बार पुनः नये संसद भवन में आमंत्रित किया है।
आपकी भाषा में तो वह मंदिर नहीं ताबूत है और अब आप ताबूत में तो हर हाल में जाना ही पड़ेगा। नहीं तो जनता पूछेगी कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा में मैं आपको चुन कर सांसद क्यों बनाएं क्योंकि आप तो नये संसद भवन में जाना नहीं चाहते।
और जनता आपको हराकर वास्तव में ताबूत में भेज देगी।
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