भुख की ज्वाला

भुख की ज्वाला

इस दूनिया में कुछ लोग ठूंस फेंक कर खाते हैं ,
और कुछ लोग ऐसे हैं जो भुखे ही सो जाते हैं ।
कुछ लोगों के द्वारा खाना कुड़े पर फेंका जाता है ,
और कुछ भुखा गरीब उसे उठा उठा कर खाता है ।
कुड़े के खाने के खातिर , जानवर , कुत्ते और गरीब
आपस में लड़ते हैं ,
कौन पहले पा जाएगा , इसके लिए वे झगड़ते हैं ।
बच्ची एक गरीब की बोली , मां अब भुख सहन
नहीं कर पाती हूं ,
मां ने बच्ची से कहा रूक , मैं भीख मांग कर लाती हूं ।
भीख भी कहीं मिला नहीं तो , कुड़े से सुखी रोटी उठायी ,
अपने भुख की ज्वाला रोक , बच्ची के लिए उसे लायी ।
घर में कोई पात्र नहीं , बस बिखरे कागज के कुछ टुकड़े थे ,
बाकी पात्र बस मां का आंचल था , वो भी फटे चिथड़े थे ।
मां के पुकारने पर भुखी बच्ची , एक कागज का
टुकड़ा लेकर आ गयी ,
पर उस कागज के टुकड़े पर रोटी का चित्र अंकित देख ,
उसे रोटी समझकर खा गयी ।
उस मां के दर्द को कौन समझ सकता है , जिसने बच्ची को
कागज के टुकड़े को खाते देखा ,
एक भुखा ही भुख की ज्वाला को समझ सकता है ,
बस यही है भुख की सही लेखा जोखा ।
इस दूनिया में गरीब अमीर की खाइ , कभी पट न पाएगी ,
और भुखे पेट की ज्वाला , गरीब को हरदम तड़पाएगी ।
गरीब को रहने को ठौर नहीं , खाने को एक कौर नहीं ,
यही तो भुखे पेट गरीब की , एक सच्ची कहानी है ,
जिसे हंसकर देखती है सारी दुनिया , पर गरीब पर तरस कितनों
को आनी है । 
 जय प्रकाश कुंअर
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