बिहार को महागठबंधन बनाने की बेचैनी क्यों ?

बिहार को महागठबंधन बनाने की बेचैनी क्यों ?

दिव्य रश्मि संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |
बिहार बेचैन हैं केन्द्र सरकार की विपक्ष के नेता, भ्रष्टाचारियों और विरोधियों को एकजुट करने और महागठबंधन बनाने में। आखिर बिहार को महागठबंधन बनाने की बेचैनी क्यों ? कहीं जेल जाने के डर से भ्रष्टाचारियों और विरोधियों में महागठबंधन बनाने की बेचैनी तो नही?

देखा जाय तो कर्नाटक में नई सरकार के गठन के बाद बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो प्रधानमंत्री कैंडिडेट नहीं होने के बावजूद, विपक्षी एकता को लेकर कवायद तेज कर दी है। विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। बिहार में विपक्षी दलों की प्रस्तावित बैठक को लेकर भी विपक्ष के नेताओं से मिल रहे हैं। कहीं नीतीश जी की यह मुहिम महागठबंधन के बहाने देशभर के भ्रष्टाचारियों को एकजुट करने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? लेकिन यह कोशिश सफल होता नहीं दिख रहा है। अब देखना है कि 23 जून को केन्द्र सरकार की विपक्षी पार्टियां की जमघट पटना में कितना सार्थक होता है और महागठबंधन की दशा - दिशा क्या होता है।


बिहार में गंगा नदी पर बन रहे ओवरब्रीज एक बार नहीं दो दो बार टूट गया है। यह भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है? जनता की राशि का यह उपयोग है या दुरुपयोग? क्या अपने इस भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए तो नहीं सारे भ्रष्टाचारियों का जुटान करने वाले है। कहीं उन्हें डर तो नहीं सता रहा है कि 2024 में यदि नरेंद्र मोदी की सरकार फिर से देश में बन गया तो जो लोग आज बेल पर बाहर हैं, वे कहीं जेल न चले जाएं। यह निश्चित है कि नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन गए तो भ्रष्टाचारियों का दाल नहीं गलेगा।


आज आप (अरविंद केजरीवाल) सरकार के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत अनके करीबी लोग भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं। बेल की कोशिश करने पर भी उन्हें बेल नहीं मिल पा रहा है। जबकि वहीं कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी बेल पर हैं। ऐसे में लोगों का बेचैनी बढ़ना लाजमी दिखता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि जेल में बंद और बेल पर बाहर आए भ्रष्टाचारियों को एकजुट करने की कोशिश जोर सोर से चल रही है।


कर्नाटका में भाजपा की हार को देखते हुए विपक्षियों का गोलबंद होना लाजमी है। और इसी का परिणाम है कि विपक्षियों का महागठबंधन बनाने में तेजी दिख रही है।

आज प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को आगामी लोकसभा चुनाव में हराने के लिए एन केन प्रकेन विपक्षी पार्टी लगे हुए हैं। भले ही इसके लिये गोरियों, मुगलों, अब्दालियों या फिर इटली, पाकिस्तान और चीन की मानसिकता वाले ही क्यों न हो उनसे मदद लेने को तत्पर दिखते हैं। आखिरकार प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को हराना है।


अब इस महान कार्य को अंजाम देने का बीड़ा बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उठाया है और काँग्रेस, तृणमूल, लेफ़्ट, सपा, राजद, शिवसेना (उद्वव ठाकरे), एनसीपी, जदयू और अन्य पार्टी को एक मंच पर लाने का काम कर रहे हैं।


यह सोचनीय विषय है कि जो कभी भाजपा (नरेन्द्र मोदी) के साथ थे, वे आज नरेन्द्र मोदी के विरोध में विपक्षियों की गठबंधन बनाने में लगे हैं। इस से यह निश्चित हो जाता है कि विपक्षियों के कारगुजारी या तो गड़बड़ है या गड़बड़ करने के लिए गोलबंद होना चाहते हैं। ऐसे में नि:संकोच विदेशियों और विधर्मियों का संगठित होने वाले महागठबंधन को भरपूर साथ मिलेगा।

लेकिन मुझे लगता है कि जहां जनता सब कुछ समझती है वहां लाख कोशिश करने पर भी सफलता संदिग्ध रहता है।
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