मैं ही सब कुछ

मैं ही सब कुछ

मैं ही छात्र ,
मैं ही शिक्षक ।
मैं ही परीक्षार्थी ,
मैं ही परीक्षक ।।
मैं ही वीक्षक ,
मैं ही अधीक्षक ।
मैं ही सब कुछ ,
मैं ही निरीक्षक ।।
सबसे ऊंचे शीर्ष पर ,
चुनाव हो हमारा ।
मेरे नीचे ही रहे ,
यह नाम तुम्हारा ।।
मैं बनूं अफसर ,
तुम बनो चपरासी ।
मैं रहूंगा काशी ,
तुम चढ़ना फांसी ।।
तुम करो चाहे कुछ ,
पेपर में नाम हमारा ।
तुम बनो चाहे यशस्वी ,
विश्व में नाम जगे हमारा ।।
सही हो तो नाम हो मेरा ,
गलत हो तो तेरा नाम ।
मैं विश्व में नाम कमाऊं ,
तुम हो भले बदनाम ।।
शीर्ष पे रहूं तो लाभ मेरा ,
खूब मैं लाभ कमाऊं ।
तुम भी लेना चटनी बराबर ,
शीघ्र ही आगे मैं बढ़ जाएं ।।
पहला स्थान मेरा होगा ,
दूसरे स्थान मेरे परिजन ।
तीसरा स्थान तेरा होगा ,
चौथे में रहेंगे हरिजन ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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