आम

आम

जितना प्यारा राम है ,
उतना प्यारा आम है ।
चटनी व अंचार बनाओ ,
आता वह हर काम है ।।
अमिया है चटनी बनाओ ,
या बनाओ तुम खटाई ।
या तुम खटमिट्ठी बनाओ ,
सुन्दर स्वाद बढ़ जाई ।।
बड़ा हुआ अंचार बनाओ ,
खाओ अंचार चटक मटक ।
पके आम मधुर रस पाओ ,
खा लो आम ललक ललक ।।
कच्चा आम पका आम ,
खरीदो आम दे दो दाम ।
कच्चे खाओ तो है राम
पक जाए तो राम‌ ही राम ।।
आम्रोद्यान धाम बन जाता ,
बगीचेवाला राम बन जाता ।
लेकर जाते बगीचे में पैसे ,
नकद नकद काम बन जाता ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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